शहर के बाहरी इलाके में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित, भर्तृहरि की गुफाएं लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। पत्थर के खंभों पर बनी इस गुफा में कई कमरे हैं। इन कमरों में मूर्तियां या हिंदू देवताओं की छवियां रखी हैं। इस गुफा के अंदर एक छोटा सा मंदिर भी है, जो नाथ समुदाय के भक्तों का पवित्र तीर्थस्थल है। 11 वीं शताब्दी में, ये गुफाएं उज्जैन की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन गईं थी।

किंवदंती है कि इस गुफा का नामकरण राजा विक्रमादित्य के सौतेले भाई भर्तृहरि के नाम पर किया गया है। भर्तृहरि ने लगभग 12 वर्षों तक यहां ध्यान लगाया था। भर्तृहरि प्रतिभाशाली कवि और महान विद्वान थे, जिनकी प्रमुख रचनाओं में नीतिशतक, वैराग्यशतक और शृंगारशतक शामिल है। इन गुफाओं में इतने संकरे प्रवेश द्वार हैं कि उनमें प्रवेश करना बहुत मुश्किल है। हर साल, हजारों भक्त इस विद्वान को श्रद्धांजलि देने यहां आते हैं, नाथ सम्प्रदाय के संत तो गुफाओं के बाहर तंबू लगाकर ध्यान भी लगाते हैं।

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