राजकोट से लगभग 75 किमी दूर स्थित तरनेतर, अपने वार्षिक मेले के लिए प्रसिद्ध है जिसे तरनेतर मेला कहा जाता है। मेले की उत्पत्ति को द्रौपदी के स्वयंवर से जोड़ा गया है। ऐतिहासिक रूप से माना गया है कि यह मेला लगभग 200-250 साल पहले शुरू हुआ था और हर साल त्रिनेत्रीश्वर महादेव के मैदान में इसे आयोजित किया जाता है। यह मेला राज्य के जनजातीय लोक नृत्य, संगीत और कलाओं को बढ़ावा देता है और यह ऐसे युवा आदिवासी पुरुषों और महिलाओं पर केंद्रित है, जो अपना जीवनसाथी तलाश रहे होते हैं। 'रास' यहां के सबसे लोकप्रिय नृत्य रूपों में से एक है, जिसमें 200 महिलाएं एक घेरे में एक लय में घूमती हैं। झालावाड़ की रबाड़ी महिलाएं रहड़ो नामक एक प्रसिद्ध नृत्य करती हैं। नृत्य के अलावा, गायन में तल्‍लीन अनेक भजन मंडलियां भी यहां देखी जा सकती हैं। मेले के दौरान कई दुकानें सजाई जाती हैं, जहां से पर्यटक, जनजातीय आभूषण, पोशाकें आदि खरीद सकते हैं।

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