अजी और न्‍यारी नदियों से घिरा, गुजरात राज्य के सौराष्ट्र के दिल में बसा राजकोट, चहलपहल भरा एक शहर है, जो स्मारकों तथा कला और संस्कृति की प्राचीन परंपराओं की अपनी विरासत का संरक्षक है। आधुनिक और पारंपरिक मूल्यों के सुंदर मिश्रण, राजकोट की गिनती, गुजरात के सबसे जीवंत शहरों में होती है। कोई भी समय हो, राजकोट की सड़कों पर टहलते हुए आप (सौराष्ट्र के) स्‍नेही काठियावाड़ी लोगों के आतिथ्य के चलते उत्साह और ऊर्जा की भावना से ओत-प्रोत हो जाते हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों की ओर गर्मजोशी से हाथ बढ़ाना काठियावाड़ी संस्कृति की पहचान है। संकरी और तंग गलियों में पारंपरिक परिधानों तथा पीतल के बर्तनों से सजीं रंग-बिरंगी दुकानों के चलते राजकोट, ख़रीदारों का स्वर्ग है।

सौराष्ट्र रियासत की भूतपूर्व राजधानी, राजकोट की स्थापना और नामकरण राजू संधी के नाम पर किया गया था। आगे चलकर, 1620 ई. में ठाकोर साहिब विभोजी आजोजी जडेजा ने इस पर कब्ज़ा कर लिया था। महात्मा गांधी के पिता, करमचंद गांधी को राजकोट के दीवान के रूप में नियुक्त किया गया था और गांधीजी ने अपने जीवन के शुरुआती साल घीकांटा क्षेत्र और अल्फ्रेड हाई स्कूल में बिताये थे।