गांधी घाट

पटना में गंगा नदी पर कई घाट है, जिसमें गांधी घाट सबसे लोकप्रिय है। इस घाट का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां गांधीजी की अस्थियां विसर्जित की गई थी। प्रत्येक सप्ताहांत में शाम को इस घाट पर गंगा जी की आरती होती है। आरती के समय इस घाट पर लोगों की भीड़ लग जाती है। केसरी रंग के वस्त्र पहने पुजारी बड़ी श्रद्धा भाव से आरती करते हैं। हरिद्वार और वाराणसी की प्रसिद्ध गंगा आरती के समान ही, यहां भी आरती की शुरूआत शंख बजाने से की जाती है।

इस घाट पर पर्यटक नाव की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित एमवी गंगा विहार नामक रिवर क्रूज जहाज यहीं से चलता है। जहाज या किसी भी किराए की नाव से आरती को देखना अविस्मरणीय अनुभव है।

गांधी घाट

तख्त श्री हरमंदिर साहिब

यह गुरुद्वारा सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले 10 वें सिख गुरू गोविंद सिंह की जन्म स्थली हैए जिसे पटना साहिब के नाम से भी जाना जाता है। यह गुरूद्वारा पटना के चौक क्षेत्र में पुराने क्वार्टर की भीड़.भाड़ वाली हरमंदिर गली में स्थित है। इसे सिख धर्म के पांच तख्तों में से एक माना जाता है। इसे पंजाब के प्रसिद्ध शासक महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था।

गुरुद्वारा में गुरु गोविंद सिंह के कई निजी सामान हैंए जिसमें चार लोहे के तीरए हथियारए एक जोड़ी चप्पलए और एक पंगुरा ;पालनाद्ध हैए जिसके चारों कोने पर सोने की परत चढ़ी है। यह बचपन में गुरु गोविंद सिंह का पालना हुआ करता था। गुरु गोबिंद सिंह और गुरु तेग बहादुर की ष्हुक्मनामाष् किताब भी यहीं रखी हुई है। गुरुनानक जयंती के उत्सव के दौरान इस गुरुद्वारे में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है।

तख्त श्री हरमंदिर साहिब

पत्थर की मस्जिद

मुगल सम्राट जहांगीर के बेटे परवेजशाह ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। गंगा नदी के किनारे स्थित यह मस्जिद बिहार में उनके शासनकाल में बनवाई गई थी। अपने नाम के अनुरूप यह मस्जिद पूर्ण रूप से पत्थर की बनी हुई हैए जो इस शहर में मुगल वास्तुकला के कुछ बचे हुए स्थलों में से एक है। यह मस्जिद शहर की पुरानी मस्जिदों में से एक मानी जाती है। यह मध्ययुगीन वास्तुकला शैली में निर्मित है। यह पूरी मस्जिद एक ऊंचे चबूतरे पर बनी हैए जिसके केन्द्र में एक बड़ा शानदार गुंबद है। मस्जिद के कोनों में चार छोटी मीनारें और द्वार पर दो बड़ी मीनारें है। इसकी भीतरी दीवारों पर कुरान की आयतें लिखी गई हैं। यह मस्जिद छोटी होने के बावजूदए भी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है। ईद के त्यौहार पर यह मस्जिद जगमगा उठती है और लोगों की भीड़ यहां लग जाती है। यहां सिर्फ मुसलमान ही नहींए अन्य धर्म के लोग भी नमाज़ अदा करने और रूहानी शांति के लिए आते हैं। इसके अलावा कई धार्मिक समारोह यहां आयोजित किए जाते हैं। पुराने समय में यह कई सामाजिक समारोहों का आयोजन स्थल हुआ करता था।

पत्थर की मस्जिद

शेरशाह सूरी मस्जिद

यह पटना शहर की सबसे बड़ी मस्जिद होने के साथ एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल भी है। इसे स्थानीय लोग शेरशाही के नाम से भी जानते हैं। हजारों लोगों के एक साथ प्रार्थना करने के उद्देश्य से इस बड़ी मस्जिद का निर्माण किया गया था। यह मस्जिद अपनी वास्तुकला से लोगों को प्रभावित करती है। मस्जिद परिसर के अंदर मकबरे के ऊपर एक अष्टकोणीय पत्थर की पटिया है। इसकी छत के केंद्र में एक बड़ा गुंबद है और इसके चारों ओर चार छोटे गुंबद हैंए जो इसके अनोखे सौंदर्य को दिखाते हैं। लेकिन जब इस भव्य मस्जिद की वास्तुकला की बात आती है तो यहां और भी चीज़ें देखने को मिलती है। इतने सालों पहले किए गए इन गुंबदों की डिजाइन को इसकी शुद्धता के लिए सराहा जाना चाहिए। जब भी आप मस्जिद के अंदर होते हैंए तो उसके प्रत्येक कोण से जब आप गुंबदों को देखते हैंए तो आप एक समय में केवल तीन गुंबद ही देख सकते हैं। और जब आप उन्हें मस्जिद के बाहर खड़े होकर देखते हैंए तब भी आप मस्जिद के शीर्ष पर स्थित पांच गुंबदों में से तीन को ही देख सकते हैं। 16 वीं शताब्दी की इस मस्जिद का निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया था। शेरशाह ने अपनी राजधानी बिहार के सासाराम में बनाई थी। उन्होंने अपने शासनकाल में इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस संरचना में भव्य अफगानी वास्तुशिल्प का प्रभाव है। यह बिहार की कई खूबसूरत मस्जिदों में से एक है। कई लोगों का कहना है कि इस महान राजा ने इस मस्जिद का निर्माण तब कियाय जब उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं के साथ युद्ध जीत लिया था। इसके पूरब दरवाजा के दक्षिण.पश्चिम सिरे पर स्थितए इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1540 से 1545 के बीच हुआ था। शेरशाह सूरी मस्जिद सप्ताह के सातों दिन आगंतुकों के लिए खुला रहता है। इसकी खूबसूरती और प्रेरणादायक वास्तुकला को दुनिया भर के पर्यटक सराहते हैं।

शेरशाह सूरी मस्जिद