पटना संग्रहालय

हरे.भरे बगीचे में स्थितए यह संग्रहालय इस शहर के इतिहास का एक दर्पण है। यहां इतिहास को समझा जा सकता है। ब्रिटिश काल में इसे बनवाया गया था। इस संग्रहालय में मौर्य और गुप्तकालीन पत्थर की मूर्तियांए कुछ खूबसूरत कांस्य की बौद्ध मूर्तियां और थॉमस और विलियम डेनियल की 19 वीं शताब्दी के पूर्वाध के परिदृश्य चित्रों का शानदार संग्रह है।

 

पटना संग्रहालय

जालान संग्रहालय

जालान संग्रहालय को किला हाउस भी कहा जाता है। यह संग्रहालय शेरशाह सूरी के किले की नींव पर बनाया गया है। यह जालान परिवार का निजी संग्रह है। यहां के कुछ प्रसिद्ध प्रदर्शनों में एक जॉर्ज प्प्प् का डिनर सर्विस सेटए नेपोलियन का चार डंडों वाला बेडए मैरी एंटोनेट के सेवरेस चीनी मिट्टी के बरतन और चीनी जैड और मुगलों की सुंदर चांदी की नक्काशी वाली कलाकृतियों के कई बेहतरीन उदाहरण देखने को मिलते हैं। यह संग्रहालय देखने के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक है।

जालान संग्रहालय

गांधी स्मारक संग्रहालय

गांधी स्मारक संगठन को राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय भी कहा जाता है। यह पटना के गांधी मैदान के उत्तर में अशोक राजपथ पर स्थित है। जून 1965 में यहां महात्मा गांधी की एक सफेद प्रतिमा का उद्घाटन किया गया था। इस संग्रहालय में गांधी जी के जीवन का प्रदर्शन किया जाता है। यहां एक पुस्तकालय हॉलए एक सम्मेलन हॉल और साथ ही गांधी साहित्य केंद्र भी है।

गांधी स्मारक संग्रहालय

गांधी घाट

पटना में गंगा नदी पर कई घाट है, जिसमें गांधी घाट सबसे लोकप्रिय है। इस घाट का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां गांधीजी की अस्थियां विसर्जित की गई थी। प्रत्येक सप्ताहांत में शाम को इस घाट पर गंगा जी की आरती होती है। आरती के समय इस घाट पर लोगों की भीड़ लग जाती है। केसरी रंग के वस्त्र पहने पुजारी बड़ी श्रद्धा भाव से आरती करते हैं। हरिद्वार और वाराणसी की प्रसिद्ध गंगा आरती के समान ही, यहां भी आरती की शुरूआत शंख बजाने से की जाती है।

इस घाट पर पर्यटक नाव की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित एमवी गंगा विहार नामक रिवर क्रूज जहाज यहीं से चलता है। जहाज या किसी भी किराए की नाव से आरती को देखना अविस्मरणीय अनुभव है।

गांधी घाट

इंदिरा गांधी तारामंडल

इंदिरा गांधी तारामंडलए जिसे तारामंडल और पटना तारामंडल भी कहा जाता हैए देश के सबसे बड़े तारामंडल में से एक है। यहां पूरे दिन खगोल विज्ञान पर फिल्म शो के साथ.साथ खगोल विज्ञान और आकाशगंगाओं से संबंधित कई प्रदर्शनी लगाई जाती है। इस तारामंडल में एक अत्याधुनिक सभागारए बैठक हॉलए कार्यशाला क्षेत्र और प्रदर्शनी कमरा है। यहां गुंबद के आकार का प्रोजेक्शन स्क्रीन हैय जिस पर फिल्मों की स्क्रीनिंग की जाती है। इसका उपयोग दर्शकों को आकाशए सितारे और ग्रहों के बारे में फिल्में दिखाने के लिए होता हैए जो दर्शकों को मनमोहक अनुभव प्रदान करती हैं। यहां ग्रहए पृथ्वी और अन्य खगोलीय पिंडों के निर्माण और विकास के बारे में वैज्ञानिक लघु फिल्में दिखाई जाती हैं। इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली ध्वनि प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है। यह नियमित फिल्म शो प्रतिदिन चार बार आयोजित किया जाता है. दोपहर 12ण्30 बजेए दोपहर 2 बजेए 3ण्30 बजे और शाम 5 बजे। यह शो सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि अपनी शैक्षिक मूल्यों के लिए भी जाना जाता है। स्काई थियेटर में इन फिल्मों की प्रदर्शन किया जाता है। आम जनता के लिए खुला रहने वाले इस स्काई थियेटर में 276 लोग बैठ सकते हैं। इंदिरा गांधी तारामंडल इंदिरा गांधी विज्ञान परिसर के भीतर स्थित है। यहां नियमित रूप से सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन होता रहता हैए जो इस क्षेत्र के आकर्षण को और बढ़ा देता है। इस तारामंडल की नींव वर्ष 1989 रखी गई थी और इसका उद्घाटन वर्ष 1993 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा किया गया।

इंदिरा गांधी तारामंडल

संजय गांधी जैविक उद्यान

संजय गांधी जैविक उद्यान या पटना चिड़ियाघर के रूप में लोकप्रिय यह उद्यानए पटना के बेली रोड पर स्थित है। शहर के इस हरे.भरे क्षेत्र को वर्ष 1969 में स्थापित किया गया था। इसे देश के सबसे बड़े चिड़ियाघरों में गिना जाता है। यहां विभिन्न प्रजातियों के लगभग 800 जानवरों के साथ.साथ पौधों और पेड़ों की भी कई किस्में पाई जाती हैं। इस पार्क के मध्य में एक तालाब हैए जहां से जंगल के लिए कई घुमावदार रास्ते जाते हैं। इसके साथ ही यह पार्क सभी उम्र के लोगों के लिए एक रोमांचक और मजेदार अनुभव प्रदान करता हैं। संजय गांधी जैविक उद्यान का कुल क्षेत्रफल लगभग 153 एकड़ है और इसे एक ही बार में देख पाना लगभग असंभव है। इस पार्क में रॉयल बंगाल टाइगर के अतिरिक्त कई प्रजातियों के रंग.बिरंगे पक्षीए चिंपांजीए एक सींग वाले गैंडेए शेरए जिराफए जेब्राए हाथीए विभिन्न प्रकार के बंदरए हिरण और दरियाई घोड़ा आदि की विभिन्य प्रजातियां पाई जाती हैं। इस पार्क में कुल वन्यजीवों की संख्या में स्तनधारियों के 338 प्रकारए पक्षियों की 355 प्रजातियांए और 471 प्रकार के सरीसृप शामिल हैं। इस पार्क में एक एक्वेरियम भी है जिसमें 30 से अधिक दुर्लभ मछलियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इसे एक कृत्रिम द्वीप पर तालाब के बीचों.बीच बनाया गया है। एक्वेरियम देखने के लिए टिकट लेना पड़ता है। यहां के दर्शनीय स्थलों में गुलाब उद्यानए हर्बल गार्डनए ग्रीन हाउसए बच्चों का पार्कए झीलए ट्री हाउस और जंगल मार्ग हैं। यहां के सांप घर में सांपों की लगभग 30 प्रजातियां हैं। यहां चमगादड़ए कछुए और उल्लूओं के लिए अलग.अलग संग्रहालय हैं। पर्यटक पार्क के अंदर घूमने के लिए नियमित अंतराल पर चलने वाली पांच डिब्बे वाली टॉय ट्रेन में भी बैठ सकते हैं। यहां के तालाब में पर्यटकों के लिए बोटिंग की भी सुविधा है।

संजय गांधी जैविक उद्यान

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद का एक हिस्सा है। यह देश का पहला और इसके साथ.साथ यह बिहार का एकमात्र क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र है। इसे वर्ष 1978 में स्थापित किया गया था और इसका नाम बिहार के पहले मुख्यमंत्री के नाम पर रखा गया। यह स्थापना के बाद से ही गैर.औपचारिक साधनों से ष्सभी के लिए विज्ञान शिक्षाष् के विचार को बढ़ावा दे रहा है। यह गांधी मैदान के दक्षिण.पूर्व में एक शांत गली में स्थित है। इसके बगल में एक सुंदर उद्यान हैए जो विज्ञान के कुछ सिद्धांतों को प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया है। इसके द्वार पर एक बड़ा और रंगीन प्रर्दशन पटल हैए जिसमें घूमती पवन चक्की का नमूना दिखाया गया है और डायनासोर के आवाज की प्रतिध्वनि ;इकोद्ध भी सुनने को मिलती है। इसके प्रवेश द्वार पर सूर्य घड़ी मौजूद है जिसमें सूर्य की स्थिति के आधार पर समय देखा जा सकता है। श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र तीन मंजिला भवन हैय जिसकी प्रत्येक मंजिल विज्ञान से संबंधित विशिष्ट विषयों के लिए समर्पित है। इसके भूतल में फन साइंस गैलरी हैए जहां वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रदर्शन करने वाले कई प्रकार के उपकरण हैं। मिसाल की तौर पर देखा जाए तो यहां पर एक एनर्जी बॉल हैए इन बॉल्स की मदद से एनर्जी को एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित किया जाता हैए एक गतिमान गेंद की ऊर्जा से पहिए को घुमाया जाता हैए पहिए की ऊर्जा से घंटी बजने लगती है और घंटी की ऊर्जा से जाइलोफोन पर एक मधुर धुन बजाई जाती है। इसके अलावा यहां अन्य प्रदर्शनों में ऑर्गन पाइपए कर्विंग ट्रेन और इनफाइनाइट ट्रेनए मैजिक टैपए लेजी ट्यूबए जादुई गोला ;इलूसिव स्फियरद्धए मोमेंटम मल्टीप्लायर आदि शामिल हैं। इस मंजिल में एक कार्यशाला और एक सम्मेलन कक्ष भी है। यहां पहली मंजिल में दर्पण अनुभाग और महासागर जीवन खंड सहित कई खंड हैं। यहां इसके अलावा एक फ्लोटिंग बॉल हैए जो बरनौली के सिद्धांत को बताती है और अपकेंद्रीय बल ;सेन्ट्रिफ्यिगल फोर्सद्ध पर आधारित एक चक्र ;वॉर्टेक्सद्ध भी यहां प्रदर्शित किया गया है। इस मंजिल पर सभागार के साथ.साथए मानव विकास क्रम को प्रदर्शित करनी वाली एक प्रदर्शनी भी है। यहां की तीसरी मंजिल पर पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत को सफाई से प्रदर्शित किया गया है। जिसका थ्रीडी ;3क्द्ध शो हर दो घंटे के बाद प्रतिदिन आयोजित किया जाता है।

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र

खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी

भव्य अशोक राजपथ के बगल में गंगा नदी के किनारे खुदा बक्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी स्थित है। वर्ष 1891 में इस राष्ट्रीय पुस्तकालय को जनता के लिए खोल दिया गया। इस पुस्तकालय की विशेषता यह है कि इसे केवल एक आदमी ने संग्रहित किया था। इसे मोहम्मद बक्श द्वारा शुरू किया गया था और बाद में उनके बेटे खुदा बख्श द्वारा इसका विकास किया गया। मोहम्मद बख्श ने अपने बेटे को 1ए400 पांडुलिपियों का संग्रह दियाए जो उनके बेटे के लिए एक जुनून बन गया। इसलिए इस संग्रह को और बढ़ाने के लिए खुदा बख्श ने एक व्यक्ति को नियुक्त किया और अरब देशों में पांडुलिपियों को संग्रहित करने के लिए भेजा। वर्ष 1888 में उन्होंने 4ए000 पांडुलिपियों के लिए दो मंजिला इमारत का निर्माण करवाया और इसे आम जनता के लिए खोल दिया। वर्तमान में शोध सामग्री की तलाश में दुनिया भर के विद्वान इस पुस्तकालय में आते हैं। यहां उर्दू साहित्य के विशाल संग्रह के अलावाए दुर्लभ अरबी और फारसी पांडुलिपियांए राजपूती कलाकृतियांए मुगल चित्रकारी और 25 मिमी चौड़ी पवित्र कुरान की पांडुलिपियां जैसा अनूठा संग्रह है। इसके अतिरिक्त यहां स्पेनए कॉर्डोबा के मूरिश विश्वविद्यालय से पुस्तकों और साहित्य का मिश्रण भी देखने को मिलता है। यहां मुगलकाल से संबंधित पुस्तकें भी हैए जिनमें हस्तनिर्मित चित्रकारी की गई है। इस चित्रकारी से उस समय के जीवन और संस्कृति की झलक मिल जाती है। यहां ताड़ के पत्तों पर सुंदर हस्तलिपि में लिखी गई पांडुलिपियां भी हैं। इसके कई संस्करणों को दुनिया में कहीं और नहीं पाया गया है। इस पुस्तकालय में आज 21ए000 प्राचीन पांडुलिपियां और ढाई लाख से अधिक पुस्तकें हैं। वर्ष 1969 में खुदा बख्श की ओरिएंटल लाइब्रेरी को संसद के अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया। अब यह पूरी तरह से भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है और इसका प्रबंधन एक परिषद द्वारा किया जा रहा है। बिहार का राज्यपाल इस परिषद का पदेन अध्यक्ष होता है। इस पुस्तकालय में एक प्रिंटिंग प्रेस भी है जिससे यहां की एक त्रैमासिक पत्रिका छापी जाती है। यहां प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित करने में मदद करने के लिए एक संरक्षण प्रयोगशाला भी है।

खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी

सोनपुर मेला

सोनपुर का मेला एशिया के सबसे बड़े और पुराने पशु मेलों में से एक हैए यह कार्तिक पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा अक्सर नवंबर के महिने में आती है। यह मेला पटना से लगभग 30 किमी दूर स्थित सोनपुर में गंगा और गंडक नदियों के संगम पर आयोजित होता है। हिंदुओं के लिए यह पवित्र स्थल माना जाता हैए कई तीर्थयात्री यहां इन दो नदियों के संगम पर डुबकी लगाकर हरिहरनाथ मंदिर में पूजा करने जाते हैं। कहा जाता है कि बादशाह चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना के लिए घोड़े और हाथी यहीं से खरीदे जाते थे।

प्राचीन काल में पशु व्यापारी और खरीददार यहां मध्य एशिया से आया करते थे। 14.दिवसीय इस मेले की शुरूआत मंदिर में पूजा से की जाती है और कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भक्त इस नदी में डुबकी लगाते हैं। आज इस मेले में कपड़ोंए फर्नीचर और खिलौनों से लेकर बर्तनए कृषि उपकरणए आभूषण और हस्तशिल्प तक सब कुछ बिकता है। यहां स्थानीय संगीतए नृत्य और जादुई शो का आनंद भी लिया जाता है। सोन मेला को हरिहर क्षेत्र मेला भी कहा जाता है। इस मेले को देखने एशिया भर से आगंतुक आते हैं।

सोनपुर मेला

बोटिंग

पटना शहर में बोटिंग करने के अनगिनत स्थल हैं। पर्यटक गांधी घाट से शुरू होने वाले आकर्षक जलयान का आनंद ले सकते हैं। यहां आप किराए पर छोटी नाव भी ले सकते हैं। यहां बड़े जहाज पर आप एक सामूहिक जलयात्रा का भी आनंद ले सकते हैं। यह जलयात्रा नदी के किनारों से होती हुईए रेतीले नदी द्वीपोंए नदी किनारे बनी हुई पुरानी इमारतों और अनोखे मंदिरों से होकर गुजरती है। इनमें से अधिकांश परिभ्रमण एक घंटे की अवधि के लिए किए जाते हैं। यहां आपके नौकायन के बीच में एक मजेदार पड़ाव आता हैए जहां एक फ्लोटिंग रेस्टरान्ट हैए जो जल क्षेत्र के बीचों बीच स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध कराता है।

इसके अलावा इको पार्क की दो झीलों में से एक में बोटिंग की भी सुविधा उपलब्ध है। शहर के केंद्र में स्थित होते हुए भी यह एक सुंदर हरा भरा क्षेत्र हैए जिसमें प्राकृतिक उद्यान और सुंदर झीलें मौजूद हैं। संजय गांधी जैविक उद्यान या पटना चिड़ियाघर में भी एक झील हैए जहां बोटिंग की सुविधा उपलब्ध है।

बोटिंग

खरीदारी

पटना शहर में खरीदारी के काफी विकल्प हैंए जैसे कपड़ेए एक्सेसरीज़ सजावट के सामानए भोजन या लकड़ी की बनी हस्तकला और स्मृति चिन्ह। अगर आप इन्हें अपने दोस्तों और परिवार के लिए ले जाना चाहते हैं तो इन सब के लिए एक बार पटना मार्केट का दौरा जरूर करें। अशोक राजपथ पर स्थित पटना मार्केट खूबसूरत सस्ते आभूषणों और यादगार वस्तुओं का खजाना है। अगर आप नए फैशन वाले कपड़ों की तलाश में हैंए तो उसके लिए हाथवा मार्केट जाएं। बेकरगंज के हाथवा मार्केट में आप पारंपरिक कढ़ाई और जूते के साथ कपड़ों की खरीदारी कर सकते हैं। अगर आपको कुछ विशेष खरीदारी करनी है तो आप ल्हासा मार्केट जा सकते हैं। यह एक रोचक जगह है जहां तिब्बती संस्कृति और ऊनी कपड़ों को खरीद सकते हैं।

अगर आपको थोक में खरीदारी करनी है तो खेतान मार्केट का दौरा करें। यह थोक कपड़ों का बहुमंजिला बाजार है और जिन्हें अधिक मात्रा में खरीदारी करनी होती हैय वह यहां आते हैं। यहां विभिन्न प्रकार की साड़ियोंए दुल्हन के साजो सामान और लकड़ी के खूबसूरत सामान मिल सकते हैं। दलदली बाजार की इन संकरी गलियों में अच्छी गुणवत्ता वाले साबूत और पिसे हुए मसालों के साथ.साथ सूखे मेवे भी मिलते हैं।

खरीदारी

मधुबनी पेंटिंग

मधुबनी पेंटिंग ग्रामीण कला का एक रूप है इसे बिहार के मिथिला क्षेत्र की महिलाओं द्वारा विकसित किया गया था। परंपरागत रूप से यह चावल के पेस्ट और टहनियों की निब या उंगलियों के साथ की जाती थीए लेकिन आज के कलाकार रंगीन चित्रों के लिए कागज और कपड़े का उपयोग करते हैं। यह पेंटिंग ज्यादातर पौराणिक कहानियों को दर्शाती है और पहले महिलाओं द्वारा अपने घरों में देवताओं का स्वागत करने के लिए यह पेंटिंग कि जाती थी। ऐसा माना जाता है कि मधुबनी पेंटिंग की शुरूआत राम युग से हुई थी।

राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह में कलाकारों द्वारा चित्रकारी करवाई थी। पटना शहर में आप घर की सजावट के लिए मधुबनी पेंटिंग खरीद सकते हैं या मधुबनी पेंटिंग की छाप वाली साड़ियों की खरीदारी कर सकते हैं। वर्ष 2018 मेंए पटना नगर निगम ;पीएमसीद्ध ने शहर की दीवारों पर सामाजिक संदेशों के साथ राज्य की विरासत को चित्रित करने के लिए एक अभियान शुरू किया है।

मधुबनी पेंटिंग