अपने परिसर में कई स्मारकों द्वारा पुनर्निर्मित एक समृद्ध शाही विरासत के साथ, मैसूरु कर्नाटक में सुरम्य चामुंडी पहाड़ियों की तलहटी में बसा एक शहर है। यह शहर पुरानी और नईं धरोहरों का मेल है, जहाँ इस छोटे से शहर के आकर्षण को महलों और सुन्दर निर्मित बगीचों द्वारा संरक्षित किया गया है। यहाँ के विभिन्न मंदिरों, चर्चों और मस्जिदों से इस शहर की आध्यात्मिकता को भी देखा जा सकता है। हाथी दांत के रंग में रंगी हुई अधिकांश इमारतों के कारण आमतौर पर ‘आइवरी शहर’ के नाम से जाना जाने वाला यह शहर आज के यात्रियों के लिए एक आदर्श पर्यटक स्थल है – यहाँ उत्कृष्ट मूलभूत सुविधाएँ और साधारण से लेकर शानदार आवास के विभिन्न विकल्प मौजूद हैं, साथ ही यह ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व के स्थानों की एक समृद्ध श्रृंखला प्रदान करता है। यहाँ बहुत सारे भोजनालय हैं जहाँ यात्री स्वादिष्ट दक्षिण भारतीय खाने का लुफ्त उठा सकते हैं। जलमार्ग के पास स्थित शॉपिंग मॉल और बड़ी दुकानों पर केंद्र प्रामाणिक मैसूर सिल्क की साड़ियां बिकती हैं; ठेलो (चलते फिरते फूड स्टॉल) पर भूखे यात्रियों के लिए स्वादिष्ट गर्म खाना मिलता है साथ ही पाँच सितारा होटल में दावत के लिए भव्य खाना भी उपलब्ध है।

मैसूर में एक सुनियोजित छुट्टी आपको कुछ शानदार महलों और प्रकृति पार्कों का अनुभव करवाएगी, और साथ ही नए तौर तरीकों को अपनाने की इसकी क्षमता और इच्छा के साथ-साथ आसानी से सुविधाएं उपलब्ध कराके यह शहर आपके आरामदायक प्रवास को सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा, यहाँ पर्यटकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कई योग और कल्याण केंद्र भी हैं। आगंतुकों को मैसूर के वातावरण का अच्छे से लुफ्त उठाने के लिए कम से कम तीन से चार दिन का समय देना चाहिए, और उन सभी प्रसिद्ध स्थलों पर घूमना चाहिए जिनकी वजह से यह शहर हर यात्री की इच्छा सूची में सर्वोच्च स्थान पर है।

लगभग 150 वर्षों के लिए, मैसूर कर्नाटक के वोडेयार शासकों (1399-1947) की राजधानी थी जिन्होंने दस दिवसीय दशहरा उत्सव का शानदार आयोजन शुरू किया। 2010 में, इस आयोजन के 400 वर्ष पूरे हुए। 18वीं शताब्दी के अंत में हैदर अली और उनके पुत्र टीपू सुल्तान ने मैसूर पर शासन किया, जिसके दौरान मराठों, निज़ामों और अंग्रेजों के साथ कई लड़ाइयाँ लड़ी गयीं। 1799 में, चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान, टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद, राज्य पर अंग्रेजों द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया। दंतकथाओं के अनुसार, मैसूर नाम 'महिषुर' से आया है, जिसका अर्थ महिषासुर का घर है। आधुनिकीकरण के बावजूद भी शहर अपने अतीत से दूर नहीं हुआ है और इसके प्रतिबिंब अभी भी देखे जा सकते हैं।