महिषासुरमर्दिनी केव टेम्पल

मामल्लपुरम हिल के दक्षिणी छोर पर स्थित है महिषासुरमर्दिनीए यह एक गुफा मंदिर हैए एवं अपनी दीवारों पर उकेरे गए बारीक नक्काशियों के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से एक में भगवान विष्णु नागों के राजाए आदिशाह की कुंडली के ऊपर सोते हुए दिखाई देते हैंए जबकि दूसरे में देवी दुर्गा अपने शेर पर सवार महिषासुर राक्षस से लड़ते हुए दिखती हैं। इनके अलावाए मंदिर के केंद्र में भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच विराजमान भगवान मुरुगन की मूर्ति है। चट्टानों को तराश कर बनाए गए इन मंदिरों में प्राचीन हिंदू महाकाव्यों एवं पुराणों के दृश्यों को दिखाया गया है। इन केव टेम्पल्स का निर्माण 7वीं शताब्दी में पल्लव वंश ;275 ब्म् से 897 ब्म्द्ध के राजाओं ने करवाया था। यह गुफा उस समय के विश्वकर्मा समुदाय के मूर्तीकारों के उत्कृष्ट मूर्तिकला का प्रमाण है।

महिषासुरमर्दिनी केव टेम्पल

वराह गुफा मंदिर

वराह गुफा मंदिर भगवान विष्णुए देवी गजलक्ष्मीए भगवान त्रिविक्रमा ;भगवान विष्णु के पांचवें अवतारद्ध और देवी दुर्गा की चार उत्तम नक्काशी के लिए जाना जाता है। इस पहाड़ी मंदिर में चट्टानों में उत्कृष्ट नक्काशी हैंए जो उस सदी के विश्वकर्मा समुदाय की मूर्तिकला के बेहतरीन नमूने हैं। सबसे प्रमुख मूर्ति भगवान विष्णु के वराह अवतार की हैए जो पृथ्वी को बचाते हुए दिख रहे हैं। इस गुफा मंदिर की दीवारों पर कई अन्य पौराणिक चरित्रों को उकेरा गया हैए साथ में राजसी शेरों की अलंकृत छवियां भी हैं। बाहर की दीवारों पर देवी.देवताओं और मां दुर्गा की नक्काशी की गई है। गुफा में प्रवेश करते ही दाएं हाथ के पैनल पर भगवान विष्णु को आठ.शस्त्र लिए विशालकाय रूप में देखा जा सकता हैए जिसे त्रिविक्रम कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी रूप में भगवान विष्णु ने राक्षस महाबली का वध किया था। 7वीं 

वराह गुफा मंदिर

त्रिमूर्ति केव टेम्पल

त्रिमूर्तिए यह हिंदू धर्म के तीन भगवान ब्रह्माए विष्णु और शिव तीन कक्ष वाला मंदिर है। यह मंदिर श्कृष्ण की बटर बॉलश् से थोड़ी दूर मामल्लपुरम हिल के उत्तरी छोर पर है। इस गुफा मंदिर में पर्यटक पल्लव वंश की वास्तुकला की भव्यता देख सकते हैं। इस रॉक गुफा के पिछवाड़े में हाथियों की बारीक नक्काशी की गई है। ऐसी गुफाएं भारत में बहुत कम हैंए जो पूरी तरह से खुदाई के दौरान पाई गई हैं। त्रिमूर्ती के ये तीनों मंदिर खुदाई के दौरान पहाड़ी के पश्चिमी मुहार पर मिले हैं और इन तीनों स्थलों तक पहुंचने के लिए अलग.अलग सीढ़ियां हैं। तीनों मंदिरों के मुख पर बारीक नक्काशी में द्वारपाल बना हुआ है।

त्रिमूर्ति केव टेम्पल

शोर टेम्पल

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में वर्गीकृतए शोर टेम्पल मामल्लपुरम के आसपास का सबसे पुराना और अकेला बचा हुआ मंदिर है। 7वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में निर्मितए यह द्रविड़ियन और पल्लव वास्तुकला का एक आदर्श नमूना हैए जिसे राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय ने ;सन् 695.722द्धए ग्रेनाइट पत्थर से बनवाया था। उस काल में यह मंदिर एक अत्यंत व्यस्त बंदरगाह भी हुआ करता था। मंदिर के भीतर तीन गर्भगृह हैंए जिनमें से दो भगवान शिव और एक भगवान विष्णु का है। शोर टेम्पल उन सात मंदिर परिसरों में से एक हैए जो बंगाल की खाड़ी के तट पर आज भी खड़ा हैए शेष छः मंदिर परिसर समुद्र में समा गए हैं। वर्ष 2004 में आई सुनामी के दौरान डूबे हुए मंदिरों के कुछ अवशेष दिखाई दिये थे। भले ही मंदिर में अनेक प्रकार की नक्काशी समय के साथ नष्ट हो गई या बरबाद हो गई होंए फिर भी उत्कृष्ट नक्काशी की गुणवत्ता अभी भी देखी जा सकती है। बागानों और खंडहरों से घिरा हुआए दो मंजिला शोर टेम्पल चट्टान में की गई नक्काशी के साथ बेहद ही भव्य दिखाई देता है। आसपास के अन्य छोटे मंदिर इस विशाल इमारत की सुंदरता बढ़ा देते हैं।

शोर टेम्पल