डोकरा आर्ट धातु की कलाकृतियों के निर्माण की एक पद्धति है और ऐसा माना जाता है कि यह लगभग 5ए000 वर्ष पुरानी है। डोकरा कमार जाति के आदिवासी सदियों से इस कला का प्रयोग करते आ रहे हैंए और आज भी इसकी लोकप्रियता बनी हुई है। डोकरा कला में तांबे और कांस्य से बनी मिश्रधातुओं से निर्मितए धातु की विलक्षण मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। यह प्रक्रिया इतनी कठिनए उबाऊ और जटिल है कि कई बार एक कलाकृति बनाने में एक महीने का समय भी लग जाता है।इस प्रक्रिया का पहला चरण मिट्टी के उपयोग से भीतरी भाग का निर्माण करना है जो शिल्पकृति के अंतिम रूप से आकार में थोड़ा ही छोटा होता है। इसे धूप में सुखाया जाता है और शिल्पकृति के ऊपर जरुरत के अनुसार मोटाई में मोम की परत चढ़ाई जाती है। इस पर फिर से मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है और इसके बाद इस पर डिजाइन उकेरे जाते हैं और बाद में मिट्टी की और अधिक परतें चढ़ाई जाती हैं और तब तक सुखाया जाता है जब तक सांचा कठोर न हो जाए। इसके बाद मोम को पिघलाने के लिए सांचे गर्म किया जाता है। एक बार जब मोम पूरी तरह गर्म हो जाए तो पिघली हुई धातु को गार में डाल करए मिट्टी के सांचे के आकार में ढलने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब धातु ठंडी हो जाती है तो यह सूख जाती है और सांचा को दो या तीन बराबर टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। इसके बाद असल शिल्पकृति निकल कर सामने आती है। अतरू सांचा टूटने के बाद कोई भी दो डोकरा टुकड़े एक जैसे नहीं दिखते।अंतिम चरण में धातु को सील किया जाता है। इसके बाद पेटिना को संरक्षित करने के लिए उस पर मोम की अंतिम परत लगाई जाती है।

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