तिरुमाला देवस्वोम मंदिर

मट्टनचेर्री में सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक, तिरुमाला देवस्वोम मंदिर भगवान वेंकटचलपति को समर्पित है। गर्भगृह में भगवान की मूर्ति के दोनों तरफ उनकी पत्नी, श्रीदेवी और भोदेवी दोनों की मूर्तियां हैं। यात्री यहां आकर हनुमान, भगवान गणेश, देवी महालक्ष्मी और गरुड़, एक पौराणिक पक्षी और भगवान विष्णु के वाहन के मंदिरों के दर्शन करते हैं। नवंबर और अप्रैल के महीनों में कई त्योहारों का आयोजन होने पर मंदिर में बड़े पैमाने पर भीड़ देखने को मिलती है। मंदिर के अहाते में स्वामी विजयेंद्र थेरथा, जो एक दार्शनिक थे और विजयनगर के राजा भी, की प्रतिमाएं हैं। एक पवित्र तालाब भी है। विशेष रूप से गौर करने लायक एक विशाल कांस्य की घंटी भी है जिसका व्यास लगभग चार फीट है और वह छह फीट ऊंची है। ऐसा कहा जाता है कि पहले के समय में, घंटी की आवाज़ को दूर से सुना जा सकता था। मंदिर का निर्माण 1559 में हुआ था।

तिरुमाला देवस्वोम मंदिर

परदेसी आराधनालय

एक संकरी गली जो मट्टनचेर्री पैलेस और ज्यूइश सिनेगॉग के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए निकलती है, ज्यू टाउन, शहर के सबसे पुराने स्थानों में से एक है, जहां कभी बड़ी संख्या में यहूदी रहा करते थे। एक प्रमुख आकर्षण है 1568 में बनाया गया परदेसी सिनेगोग। यह प्रभावशाली भवन बेल्जियम के झाड़फानूस से सज्जित है जो बहुत ही शान से चमकता है। आराधनालय के फर्श पर चीन की विलो-पैटर्न वाली और हाथ से पेंट की गई टाइलें बिछी हैं, जो माना जाता है कि 18 वीं शताब्दी की हैं। यह माना जाता है कि आराधनालय में टोरा (ओल्ड टेस्टामेंट की पहली पांच पुस्तकें) के चार सूचीपत्र हैं। ये सोने और चांदी के प्रकोष्ठों में रखे हैं। पर्यटक ज्यू टाउन में धूम सकते हैं जहां हमेशा हलचल रहती है और वहां से अद्वितीय हस्तशिल्प, सुगंधित मसाले और उत्तम प्राचीन वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। 

परदेसी आराधनालय

आवर लेडीज कॉन्वेंट

आवर लेडीज कॉन्वेंट देखना एक अनूठा अनुभव है। यहां सुरुचिपूर्ण कढ़ाई और सुई से किए जाने वाले काम को देख सकते हैं, जिसके लिए कॉन्वेंट एक केंद्र है। अधिकांश लेस, कढ़ाईदार और क्रोशिये वाले  कपड़े एक पुरानी दुनिया के आकर्षण को दर्शाते हैं और इटली और स्पेन में डिजाइन से काफी हद तक प्रभावित हैं। हालांकि, आधुनिक डिजाइन का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। वहां ढेरों उत्पाद प्रदर्शित हैं और पर्यटक अपनी मनपसंद चीजों की खरीदारी कर सकते हैं। इनमें से कुछ उत्पाद ज्यू स्ट्रीट, मट्टनचेर्री में भी खरीदे जा सकते हैं। कई महिलाओं को कॉन्वेंट द्वारा नौकरी पर रखा जाता है और वे रूमाल, साड़ी और मेजपोश पर उत्कृष्ट कढ़ाई का काम करती हैं।  कॉन्वेंट को अपने हस्तनिर्मित और अद्वितीय उत्पादों के लिए दुनिया भर से ऑर्डर प्राप्त होते हैं। 

किंवदंती है कि सुई का काम केरल में ईसाई मिशनरियों और यूरोपीय नन के माध्यम से आया था, जिन्होंने कोच्चि की महिलाओं के साथ अपने कौशल को साझा किया था। 9 वीं शताब्दी के बाद, कोच्चि विविध प्रकारों की सुई का एक केंद्र बन गया।

आवर लेडीज कॉन्वेंट

अलुवा

कोच्चि के बाहरी इलाके में स्थित, एक दर्शनीय शहर, अलुवा, भगवान शिव के सम्मान में आयोजित होने वाले वार्षिक शिवरात्रि समारोह के लिए प्रसिद्ध है। ये आमतौर पर फरवरी / मार्च को कुंबम के मलयालम महीने में आयोजित होता है, जो शांत पेरियार नदी के तट पर है। भगवान शिव को समर्पित अलुवा मणप्पुरम मंदिर में आयोजित होने वाले त्योहार के दौरान विशेष पूजा, प्रसाद और प्रार्थनाएं की जाती हैं। दिन के दौरान, मंदिर में 500 से अधिक पुजारियों द्वारा अनुष्ठान किया जाता है, जबकि भक्तों की अपार भीड़ देवता के प्रति निष्ठा प्रकट करने के लिए इकट्ठा होता है। उनमें से कई पूरे दिन उपवास करते हैं। प्रार्थना के अलावा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और व्यापार मेले भी आयोजित किए जाते हैं। त्योहार भगवान शिव की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने दुनिया को बचाने के लिए एक घातक जहर पी लिया था।

अलुवा

वल्लारपदम

कोच्चि का एक हिस्सा है वल्लारपदम जो सुरम्य द्वीपों में से एक है। यह वल्लारपदम चर्च या बेसिलिका ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ रैनसम के लिए जाना जाता है। एक प्राचीन चर्च जिसे बेसिलिका का दर्जा दिया गया है, यह एर्नाकुलम जिले के सबसे प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक है। प्राचीन सफेद इमारत 1524 में पुर्तगालियों द्वारा बनाई गई थी और पवित्र मैरी या वल्लारपदथ अम्मा को समर्पित है, क्योंकि वह यहां पूजी जाती हैं। चर्च में वर्जिन मैरी की एक मूर्ति है। माना जाता है कि इसे पुर्तगालियों द्वारा यहां लाया गया था। यहां आने का सबसे अच्छा समय वल्लारापदथ अम्मा के भोज दावत के दौरान होता है, जो सप्ताह भर चलने वाला कार्यक्रम है तथा 24 सितंबर को आयोजित किया जाता है।

प्रारंभ में, चर्च को चर्च ऑफ होली स्पिरिट कहा जाता था, हालांकि, यह 17 वीं शताब्दी में बाढ़ में नष्ट हो गया था और 1676 में उसी स्थान पर एक नया चर्च स्थापित किया गया था। 

वल्लारपदम

वैकोम शिव मंदिर

Located on the outskirts of Kochi, Vaikom is best known for the Vaikom Mahadeva Temple. Dedicated to Lord Shiva, the temple boasts a marvellous Kerala-style architecture. It is popularly called Kashi of the South. Devotees can also visit Ettumanoor Shiva Temple and Kaduthuruthy Thaliyil Mahadeva Temple. It is said that worshipping at all the three temples opens doors to a multitude of blessings. Legend has it that demon Kharasura once did severe penance and prayed to Lord Shiva to attain moksha or salvation. Lord Shiva granted him all his wishes and gave him three lingas, asking him to worship them to attain moksha. Kharasura carried one in his right hand, the other in his left hand and the third tied around his neck. After travelling for long he sat down to rest awhile. When he rose to continue his journey he realised that he couldn't lift the lingas. Upon hailing Lord Shiva, he was told that Lord Shiva would remain where he had been put down to give moksha to anyone who came here to worship him. So it is said that the linga in the right hand is Vaikom, the left one Ettumanoor and the one on the neck is Kaduthuruthy.

वैकोम शिव मंदिर

एर्नाकुलम शिव मंदिर

पश्चिम में ठीक समुद्र के सामने दुर्लभ शिव मंदिरों में से एक, एर्नाकुलम शिव मंदिर एक प्राचीन स्थल है जिसके दर्शन करने दूर-दूर से भक्त आते हैं। दरबार हॉल ग्राउंड में स्थित, मंदिर अरब सागर के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। गर्भगृह में एक शिवलिंग है जिसे 'स्वयंभू' कहा जाता है। मंदिर 1.2 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और वास्तुकला की विशिष्ट केरल शैली में बनाया गया है। छल्ले के आकार का गर्भगृह विशेष रूप से भव्य दीवारों और तांबे की टाइल वाली छत के साथ अत्यंत ही सुंदर लगता है। यहां से, पर्यटक दो मंजिला पश्चिमी गोपुरम के शानदार दृश्य देख सकते हैं, जो कि सजी छत और तिरछी खिड़कियों से डिजाइन किए गए हैं। हाल ही में एक डाइनिंग हॉल या ओट्टुपुरा और एक मैरिज हॉल भी इसमें बनाया गया है।

एर्नाकुलम शिव मंदिर

तिर्यक्कार वामनमूर्ति मंदिर

भगवान वामन को समर्पित एकमात्र मंदिर, जो भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हैं, एर्नाकुलम के पास स्थित है। माना जाता है कि ब्राह्मण लड़के के वेश में वामन ने राजा महाबली का शानदार शासन समाप्त कर दिया। मंदिर, जो लगभग दो सहस्राब्दी पुराना है, को 108 दिव्य देशमों (दिव्य स्थानों) में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। बहुतों का मानना ​​है कि तिर्यक्कार, महाबली के राज्य की राजधानी थी।10 दिवसीय ओणम के त्योहार की शुरुआत इस मंदिर में रंगीन झंडा फहरा कर की जाती है। चूंकि ओणम इस मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, इसलिए ओणसद्या (ओणम का भोज) भी भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है। सभी धर्मों के लोग समान रूप से इसमें भाग लेते हैं, और बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक सद्भाव का जश्न मनाते हैं। इससे पहले, त्रावणकोर के महाराजा के शासन में ओणम त्योहार यहां 61 नादुवाज़ियों (स्थानीय शासकों) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। मंदिर में अन्य उत्सव भी मनाए जाते हैं जैसे कि विशु, दिवाली, मकर संक्रांति, नवरात्रि और सरस्वती पूजा।

तिर्यक्कार वामनमूर्ति मंदिर

सेंट फ्रांसिस चर्च

भारत में यूरोपीय लोगों द्वारा निर्मित सबसे पुराने चर्चों में से एक, सेंट फ्रांसिस चर्च अपने खूबसूरत डिजाइन और परिवेश के लिए जाना जाता है। एक भव्य इमारत जिसकी विशाल छत लकड़ी से बनी है और टाइलों से ढकी हुई है।  चर्च के दोनों बाहरी भागों पर दोनों ओर दो खड़ी मीनारें हैं। इसे 1503 में पुर्तगाली फ्रैंकिस्कन्स फ्रार्स समूह द्वारा बनाया गया था। शुरू में, यह एक मिट्टी और लकड़ी की इमारत थी और सेंट बार्थोलोम्यू को समर्पित थी, और बाद में पुर्तगाल के संरक्षक संत सेंट एंटोनियो को समर्पित कर दी गई। 1524 में, केरल की अपनी तीसरी यात्रा पर, पुर्तगाली खोजकर्ता, वास्को डी गामा, जो समुद्र के रास्ते यूरोप से भारत पहुंचे थे, बीमार पड़ गए और कोच्चि में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें सेंट फ्रांसिस चर्च में दफनाया गया था। लगभग 14 साल बाद, उनके अवशेषों को पुर्तगाल वापस ले जाया गया। चर्च के अंदर जहां उन्हें दफनाया गया था, उस स्थान का सीमांकन किया गया है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत संरक्षित, यह चर्च सप्ताह के दिनों में आगंतुकों के लिए खुला रहता है। रविवार और विशेष दिनों में, चर्च में सर्विसेस होती हैं।

सेंट फ्रांसिस चर्च

कालड़ी

कालड़ी का तीर्थस्थल भारतीय दार्शनिक आदि शंकराचार्य के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है, जिनका जन्म 8 वीं शताब्दी में हुआ था। कालड़ी में दो मूर्तियां हैं- एक दक्षिणामूर्ति और दूसरी देवी शारदा की। कालड़ी कई मंदिरों से सुसज्जित है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं श्री कृष्ण मंदिर, माणिकमंगलम मंदिर और श्री आदि शंकर कीर्थी मंडपम। आसपास फैले आध्यात्मिक उत्साह में डूबने के लिए, भक्त क्षेत्र के विभिन्न घाटों पर जा सकते हैं जो शांति से सराबोर हैं। पर्यटक लोकप्रिय क्रोकोडाइल घाट पर भी जा सकते हैं, जहां कहा जाता है कि एक मगरमच्छ ने एक बार युवा शंकराचार्य को पकड़ा था।

किंवदंती है कि एक दिन, शंकराचार्य की विधवा मां जब पूर्णा नदी में स्नान करने के लिए गई थीं तो बेहोश हो गई थीं। तब उनके पुत्र ने  भगवान कृष्ण से मदद के लिए प्रार्थना की और स्वामी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि जहां-जहां उसके कदम पड़ेंगे, वहीं नदी बहने लगेगी। इस प्रकार, नदी ने अपना रास्ता बदल दिया और यहां बहना शुरू कर दिया, और इस क्षेत्र को कालड़ी के रूप में जाना जाने लगा, जिसका अर्थ है पैर।

कालड़ी

सांता क्रूज़ बेसिलिका

भारत में आठ शानदार बेसिलिकाओं में से एक, सांता क्रूज़ बेसिलिका का निर्माण 1505 में पुर्तगालियों द्वारा किया गया था। उसकी दो बुलंद मीनारें दूर से ही दिखाई दे जाती हैं। इस प्राचीन सफेद संरचना का अंदर का भाग व सजावट विपरीत रंग में है। भारी मेहराब और वेदी चर्च की वास्तुकला में मध्ययुगीन वास्तुकला का एहसास कराते हैं। यहां आकर पर्यटक विशेष रूप से सात कैनवास चित्रों को देख हैरान रह जाते हैं जो लियोनार्डो दा विंची के 'लास्ट सपर' से प्रेरित हैं। आप मंत्रमुग्ध होकर जब छत पर टकटकी लगाकर देखते हैं तो जिस खूबसूरती से वहां ईसा मसीह के वाया क्रूसिस के दृश्यों को चित्रित किया गया है, यह देख आप उस समय के कारीगरों के कौशल पर अचंभित रह जाते हैं। दीवारों पर की गई बारीक नक्काशी और रंगीन कांच की खिड़कियां,चर्च की सुंदरता को बढ़ाती हैं। उन्हें देखने के बाद लंबे समय तक भूल पाना मुश्किल है। सांताक्रूज बेसिलिका सेंट फ्रांसिस चर्च के करीब है, जो देश के सबसे खूबसूरत गिरिजाघरों में से एक है।

सांता क्रूज़ बेसिलिका