अथचैयम

एक भव्य उत्सव, जो केरल के लोक कला रूपों को एक साथ लाता है, अथचैयम से ओणम के दस दिवसीय उत्सव की शुरुआत होती है। अथचैयम कोच्चि के राजा की जीत की याद दिलाता है और आमतौर पर अगस्त / सितंबर के महीने में मनाया जाता है, जब राजा और उनके दल का प्रतिनिधित्व करने वाला एक शानदार जुलूस निकाला जाता है। रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के दृश्यों को दर्शाती कई झांकियां, सजे-धजे हाथी, लोक कला के रूपों पर थिरकते और संगीत वादकों की टुकड़ियां इस जुलूस के साथ चलती हैं। समारोह की शुरुआत एक दीपक जलाकर की जाती है जो एक पुजारी प्रतीक के रूप में करता है। प्रतिभागी आमतौर पर रेशम के वस्त्र पहने होते हैं। पुरुष पीले रंग का कुर्ता और पायजामा पहनते हैं और महिलाएं पेवड़ा दवानी या साड़ी पहनती हैं। लोग अपनी पोशाक से मेल खाते रंगीन और बड़े-बड़े मुखौटे भी पहनते हैं। 

सबसे विशेष होते हैं थेय्यम जैसे नृत्य रूप, जिसमें नर्तकियों ने बड़े-बड़े, फैले हुए घाघरे पहने हुए होते हैं और सिर पर भी बड़ी-बड़ी टोपियां या अलग-अलग प्रकार की सजावटी चीजें धारण की हुई होती हैं। किंवदंती है कि एक परोपकारी राजा, महाबली, एक समय में इस क्षेत्र पर शासन करते थे, जिनकी प्रजा उनकी पूजा करने लगी थी। इससे देवता नाराज हो गए क्योंकि राजा एक राक्षस था और उन्होंने उसे मार दिया। इस प्रकार, राजा को याद करने के लिए त्योहार मनाया जाता है।

अथचैयम

अलुवा शिवरात्रि

कोच्चि के बाहरी इलाके में स्थित, अलुवा, भगवान शिव के सम्मान में आयोजित होने वाले वार्षिक शिवरात्रि समारोह के लिए प्रसिद्ध है। ये मलयालम महीने कुंबम में आयोजित होते हैं, आमतौर पर फरवरी / मार्च में। शांत नदी पेरियार के तट पर ये समारोह आयोजित किया जाता है। भगवान शिव को समर्पित अलुवा मणप्पुरम मंदिर में आयोजित होने वाले त्योहार के दौरान विशेष पूजा, प्रसाद और प्रार्थनाएं की जाती हैं। दिन के दौरान, मंदिर में 500 से अधिक पुजारियों द्वारा अनुष्ठान किया जाता है, जबकि भक्तों की अपार भीड़ देवता के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए वहां एकत्र होती है। इनमें से कई, पूरे दिन उपवास करते हैं। प्रार्थना के अलावा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और व्यापार मेले भी आयोजित किए जाते हैं। त्योहार भगवान शिव की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने दुनिया को बचाने के लिए एक घातक जहर पी लिया।

अलुवा शिवरात्रि

चंदनक्कुडम महोत्सव

केरल के एर्नाकुलम जिले में कांजीरामट्टम मस्जिद में आयोजित होने वाला, चंदनककुडम का अनुष्ठान इस क्षेत्र में आयोजित प्रमुख त्योहारों में से एक है। आमतौर पर इसे मस्जिद में जनवरी के महीने के दौरान आयोजित किया जाता है, जो कि एक प्रतिष्ठित मुस्लिम फकीर, शेख फरीदउद्दीन का स्मारक है। आप वहां जाएं तो इस उत्सव में अवश्य ही शामिल हों। इसमें सैकड़ों तीर्थयात्री एक जुलूस में शामिल होते हैं, जिनके हाथों में चंदन के लेप से पुते और सिक्कों से भरे मिट्टी के बर्तन होते हैं। जुलूस रात में निकलता है जब रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोग सजे-धजे हाथियों के साथ चलते हैं। यह त्योहार जुलूस के दौरान दर्शकों को मुस्लिम कला के विभिन्न रूपों जैसे डफमुट्टू, ओपन्ना, मपिलिप्पट्टु और कोलकली को देखने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है। ये नृत्य और गीत प्रदर्शन कांजीरामट्टोम कोडिकुथु का एक हिस्सा हैं और आकर्षक समां बांधते हैं।

चंदनक्कुडम महोत्सव

ओणम

पूरे केरल राज्य में मनाया जाने वाला ओणम मलयाली भाषियों का सबसे लोकप्रिय त्योहार है। दस दिनों तक मनाया जाने वाला ओणम अथम दिन से शुरू होता है और थिरु ओणम या थिरुवोनम तक रहता है, जिसका अर्थ है पवित्र ओणम दिन। यह अनूठा त्योहार राज्य के रंगों और संस्कृतियों को सुर्खियों में लाता है, जब केरल के लोग इस भव्य आयोजन में हिस्सा लेने के लिए तैयार होते हैं। पहले दिन, एक स्ट्रीट परेड का आयोजन किया जाता है, जिसमें खूब सजाए गए हाथी, कार्निवल फ़्लोट्स, चमकीले कपड़े पहने नर्तक और संगीतकारों और विभिन्न अन्य कलाकारों को देखा जा सकता है।ओणम को लोकप्रिय रूप से फूलों का त्योहार कहा जाता है, जब पूकलम (फर्श पर फूलों के साथ बनाई गया चित्र) बनाया जाता है। इन चित्रों को आमतौर पर मंदिरों के दरवाजों व प्रवेश द्वारों के सामने बनाया जाता है।

ओणम की सबसे आकर्षक विशेषताओं में से एक पुलिकली या बाघ का नाटक है। एक पारंपरिक नृत्य, लगभग 200 वर्ष पुराना है। इसमें सैकड़ों लोग बाघ के वेष में नृत्य करते हैं। कहा जाता है कि इस नृत्य को कोच्चि के राजा ने प्रोत्साहन दिया था, जिनको लगता था कि यह मर्दानगी का प्रतीक है।

ओणम