खरीदारी से लेकर अशोक के शिलालेख देखने तक, जूनागढ़ में करने के लिए बहुत कुछ है। पेश हैं कुछ सुझाव, जिन्हें आप अपनी यात्रा के दौरान आजमा सकते हैं।

खरीदारी

वॉल-हैंगिंग, बांधनी साड़ियां, पूजा का सामान, कढ़ाई वाले कपड़े आदि जूनागढ़ के रौनक भरे बाजारों से खरीदे जा सकते हैं। आयुर्वेदिक दवाएं, जड़ी-बूटियों से बनी चीजें, अगरबत्तियां, जूते आदि भी यहां बहुतायत में मिलते हैं। जूनागढ़ के बाजार विशेष रूप से अपने जूतों के लिए जाने जाते हैं। ये जूते भले ही पश्चिमी शैली के न हों लेकिन बहुत सुंदर और अनोखे जरूर होते हैं। यहां के हाथ से बुने गए कालीन और कपड़े भी खासे मशहूर हैं। यहां पर मिलने वाला सामान बहुत ही उचित दामों में खरीदा जा सकता है।

विलिंगडन बांध

कालवा नदी के उद्गम स्थल पर एक पहाड़ की तलहटी में बना विलिंगडन बांध एक खूबसूरत पिकनिक स्थल हैं जहां सैलानी मौज-मस्ती के लिए और सुकून प्राप्त करने आते हैं। यह बांध तीन तरफ पहाड़ियों और चौथी तरफ घाटी के मध्य सोच-समझ कर बनाया गया है। यह बांध जहां वर्षा के जल को संजो कर रखता है वहीं अपने आसपास के खूबसूरत नजारे देखने का भी यह उत्तम स्थल है। बांध तक जाने के लिए कुछ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। भारत के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड विलिंगडन के नाम पर इस बांध का नामकरण हुआ है जो कि लगभग 847 मीटर ऊंचा है। इस बांध और जलाशय का निर्माण जूनागढ़ की प्रजा के पीने के पानी की जरूरतों को ध्यान में रख कर किया गया था। इसका जल स्तर आमतौर पर कम ही रहता है। बरसातों में ही इसका जल स्तर बढ़ता है। यहां पास ही स्थित हजरत जमीयल शाह दातार की दरगाह पर भी जाया जा सकता है।

दामोदर कुंड

गिरनार पर्वत की तलहटी में स्थित दामोदर कुंड को गुजरात प्रदेश की सबसे पवित्र झीलों में गिना जाता है। यह झील राधा, बलदेव, देवी वागेश्वरी और भगवान दामोदर को समर्पित मंदिरों से घिरी हुई है। आमतौर पर लोग यहां अपने प्रियजनों के अंतिम अनुष्ठान आदि करने के लिए यहां आते हैं। यात्री यहां स्थित दो छोटे कुंडों, रेवती कुंड और मृगी कुंड में स्नान करते हैं क्योंकि इनमें स्नाना करना पवित्र माना जाता है। ये मंदिर सूर्यवंशी राजा चंद्रकेतपुर ने बनवाए थे।

अशोक के शिलालेख

गिरनार पर्वत की तरफ जाते हुए एक बड़ी इमारत में मौर्य सम्राट अशोक के 14 शिलालेख एक बड़े पत्थर पर खुदवाए गए मिलते हैं। ये शिलालेख एक लगभग दस मीटर ऊंची और सात मीटर परिधि वाली अनगढ़ चट्टान पर ब्राह्मी लिपि में खुदे हुए हैं। ये लेख शांति, सांप्रदायिक मेलभाव और धैर्य का संदेश देते हैं। इसी चट्टान पर ईस्वीं सन 150 के आसपास मालवा के शक सम्राट महाक्षत्रप रुद्रदमन द्वारा संस्कृत भाषा में खुदवाए लेख भी देखने को मिलते हैं। इन लेखों में सुवर्ण सिक्ता और पलाशिनी नदियों के अशांत पानी के पहाड़ से बह कर नीचे जाने और सुदर्शन झील पर बने बांध को तोड़ने के इतिहास का वर्णन है। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो आपको इतिहास के उस दौर में ले जाता है जब यह क्षेत्र महान मौर्य शासन काल में वैभवशाली था।