जोरहाट से करीब 200 किमी की दूरी पर स्थित यह शहर अपने बेहद खूबसूरत प्राकृतिक नजारों, जंगली जानवरों, ब्रिटिश संस्कृति, गौरवशाली युद्धों और चाय के प्रति अपनी दीवानगी के लिए खासा प्रसिद्ध है। यहां स्थित डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान, इस स्थान का एक प्रमुख आकर्षण है। ब्रह्मपुत्र नदीं के किनारे स्थित यह डिगबोई से करीब 60 किमी दूर है। असम के सभी उद्यानों में यह सबसे बड़ा है और यहां करीब 300 से ज्यादा पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों की अनेकों प्रजातियां भी विचरण करते देखी जा सकती हैं। इस लिहाज से पक्षियों में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए डिगबोई किसी स्वर्ग के समान प्रतीत होता है। 

इस पार्क में आप कुछ प्रसिद्ध पक्षियों जैसे बंगाल फ्लोरिकन, व्हाइट विग्ड वुड डक और स्पाटेड बिल्ड पैलिकन का दीदार भी कर सकते हैं। इस अभयारण्य को सन 1999 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्ज प्रदान किया गया था और आज यह विश्व के चुनिंदा 19 जैव विविधता उद्यानों में से एक है। 

डिगबोई को असम की आयल सिटी यानी तेल नगरी भी कहा जाता है। क्योंकि यह एशिया का पहला ऐसा शहर था, जहां पहले कच्चे तेल के कुंएं का खनन किया गया था और सन 1901 में यहां पहली आयल रिफाइनरी (तेल शोधनागार) की स्थापना की गयी थी। यहां आज भी सबसे प्रचीन तेल का कुआं जीवित अवस्था में मौजूद है तथा पर्यटकों के रुकने के लिए इटैलियन शैली में बने गेस्ट हाउस और रेजिडेंशियल अपार्टमेंट्स भी है, जिनमें सभी प्रकार की सुख सुविधाओं का प्रावधान किया गया है। करीब 100 साल पुराने इस कुएं से हर साल करीब 65 मिलियन मिट्रिक टन तेल निकाला जाता है, जिसके लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। तेल के साथ-साथ यहां पेट्रोलियम से बनने वाले अन्य उत्पादों जैसे वैक्स, फ्यूल और बिटुमन (ऐस्फाल्ट) इत्यादि का निर्माण भी किया जाता है। 

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