राजस्थान की जीवंत पिचाई पेंटिंग पूरे देश भर में प्रसिद्ध हैं। इन चित्रों में भगवान कृष्ण का रूप श्रीनाथजी की मूर्ति के समान बड़ी आँखेंए एक विस्तृत नाक और एक भारी शरीर होता है। ये चित्र आमतौर पर भगवान कृष्ण के जीवन को दर्शाते हैं और देवता से संबंधित विभिन्न किंवदंतियों को प्रदर्शित करते हैं। कैनवास के आकार और काम के विवरण के आधार पर इन जटिल चित्रों को बनाने के लिए दो सप्ताह से कुछ महीनों का समय लग सकता है।
प्रक्रिया में हाथ से बने हुएए मांड लगे कपड़े पर पहले से डिज़ाइन का स्केचिंग शामिल हैंए जिसके बाद रंगों को भरने का श्रमसाध्य कार्य शुरू होता है। पिचाई कलाकार आम तौर पर लाल या पीले रंग के बेस का उपयोग करते हैंए जिसमें चमकीला हरए नीला और नारंगी रंग बुना जाता है। चित्र के बॉर्डर में आमतौर पर गोटा पट्टी या मिरर वर्क होता हैए इस तरह एक विशिष्ट राजस्थानी दिखावट महसूस की जा सकती है।ये पेंटिंग विषयगत हैं और धार्मिक महत्व रखती हैं क्योंकि वे विभिन्न अवसरों या त्योहारों के लिए बनाई जाती हैं। उन्हें समकालीन और परिष्कृत रंग की बौछार जोड़ते हुएए दीवार के हैंगिंग और टेपेस्ट्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
पिचाई चित्र कि कला 400 साल पुरानी हैए इसे पारंपरिक रूप से प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके बनाया जाता थाए जिसमें घोड़ेए बकरी या गिलहरी के बालों से बने ब्रश थे। ये चित्र नाथद्वारा स्कूल ऑफ़ पेंटिंग के हैं और नाथद्वारा क्षेत्र के अधिकांश मंदिरों की दीवारों पर इन्हें देखा जा सकता है।

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