राजा बीर सिंह देओ द्वारा बनवाया गया यह किला झांसी के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है, जो सैलानियों की सूची में पहले नंबर पर रहता है। 17वीं शताब्दी में निर्मित यह किला एक पहाड़ पर बनवाया गया था और उस समय यह किला ओरछा की सेना का गढ़ हुआ करता था। फिर सन 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान यह वैभवशाली किला रानी लक्ष्मीबाई और ब्रिटिश सेना के बीच हुए घमासान युद्ध का साक्षी बना। रानी लक्ष्मीबाई के हार जाने के बाद अंग्रेजों ने इस किसे को सील कर दिया और बाद में सिंधिया के महाराज को सौंप दिया था। यहां किले के प्रांगण में ही भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित मंदिर भी हैं तथा इन मंदिरों के नजदीक ही झांसी की राणी, कड़क बिजली और भवानी शंकर की तोपों को भी रखा गया है। यहीं एक संग्रहालय भी है, जिसमें भ्रमण के दौरान पर्यटकों को बुंदेलखंडी इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। 

किले में लाइट एंड साउंड का एक शो भी किया जाता है, जिसके जरिये रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के पहलुओं को बारीकी से समझा जा सकता है। कहा जाता है कि जब अंग्रेजों ने झांसी के किले पर कब्जा कर लिया था तो वहां से सुरक्षित निकलने के लिए रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे को अपनी पीठ से बांध एक घोड़े पर बैठकर इस विशाल किले से नीचे कूद गयी थीं। इस शो के दौरान कुछ ऐसी ही घटनाओं को बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है और भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं से भी आगंतुकों को रू-ब-रू कराया जाता है। यह इतना प्रभावशाली शो होता है कि दर्शक अपनी नजरें ही नहीं हटा पाते। 

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