महागणपति मंदिर एक लघु और निरहंकार मंदिर है, पर इसका आकार भक्तों (श्रद्धालुओं) के लिए कोई मायने नहीं रखता। भगवान गणेश यहाँ के अधिपति देवता हैं और उनकी प्रतिमा समुद्र की दिशा में पश्चिमोन्मुखी है। यहाँ हमेशा भक्तों की एक लंबी कतार लगी रहती है, जिसका अर्थ यह है कि आप लगभग दस मिनटों में मंदिर की प्रदक्षिणा पूरी कर पूर्व दिशा में स्थित महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए जा सकते हैं। यहाँ जाते समय अपने मोजे उतारना नहीं भूले क्योंकि मंदिर प्रशासन इन्हें जूते ही मानता है और इसकी वजह से स्थानीय पुजारियों और पुरोहितों की भावनाएं आहत हो सकती हैं।

आख्यानों में दर्ज है कि रावण कैलाश पर्वत से आत्म लिंगम (एक दैवी लिंगम) को हटाने में सफल रहा और वह उसे लेकर लंका जा रहा था। देवतागण कतई नहीं चाहते थे कि वह अपने मंसूबों में कामयाब हो, अतः उन्होंने भगवान गणेश से विनती की कि वे हस्तक्षेप करें और संसार की रक्षा करें। भगवान गणेश जानते थे कि आत्म लिंगम को जहाँ कहीं भी भूमि पर रखा जाएगा वह धरती पर उसका अंतिम वास स्थान बन जाएगा। रावण गोकर्ण से होकर गुजर रहा था वे उसके सम्मुख एक गड़ेरिये के वेश में उपस्थित हुए और चालाकी से उससे लिंगम को वहीं रखवाने में सफल रहे। यही वजह है कि लिंगम से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

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