एमजी मार्ग

गंगटोक का प्रसिद्ध एमजी मार्ग करीब 1 किमी लंबा है, जहां शाम होते ही सड़क के दोनों ओर कतारबद्ध लगे लैंप विक्टोरिया काल की याद दिलाते हैं। शाम होते ही इन लैंपों के टिमटिमाने से यहां का नजारा देहात के किसी गांव का सा लगने लगता है। इस जगह आपको कई सारी खान-पान की दुकानें, पारिवारिक रेस्तरां और कुछ कैफे वगैराह भी मिलेंगे, जो अपने आप में थोड़े विचित्र से लगते हैं। पर्यटक यहां विशेष रूप से पारंपरिक सिक्कीमी हस्त-शिल्प वस्तुएं जैसे- लकड़ी के बियर पाट, झंडे प्रार्थना चक्र और पारंपरिक नेपाली चाकू खरीदने आते हैं। एमजी मार्ग, देश का पहला ऐसा क्षेत्र है, जहां न तो कोई गंदगी है और न ही कोई इधर-उधर थूकता है या गंदगी फैलाता है। इस मार्ग पर वाहन लाना प्रतिबंधित है तथा सरकार द्वारा शुरू की गयी हरित पहल के तहत सभी दुकानें हरे रंग में रंगी दिखाई देती हैं। इस मार्ग पर ही एकता के प्रतीक के रूप में भूटिया प्रमुख ख्ये बुमसा, लेप्चा नेता थेटांग टेक और उनकी पत्नी एनगो-कोंग-एनकोल की एक प्रतिमा लगी हुई तथा यहीं महात्मा गांधी का भी एक पुतला स्थापित है। 

हर दिसंबर माह में होने वाले गंगटोक के सालाना फूड महोत्सव और सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन भी एमजी मार्ग पर ही किया जाता है, जहां बड़े गर्व के साथ स्थानीय निवासी अपने पारंपरिक खान-पान, व्यंजनों के साथ अपनी संस्कृति से जुड़े गीत-संगीत और नृत्यों का भी प्रदर्शन करते हैं। कुल मिलाकर यह एक ऐसा स्थान है, जो सैलानियों को एक ही जगह पर इस क्षेत्र की अनछुई और अनोखी विरासत से रू-ब-रू होने का अवसर प्रदान करता है। 

एमजी मार्ग

लाल बाजार

यदि आप सेहतमंद खान-पान के शौकीन हैं, तो लाल बाजार आप ही के लिए है। क्योंकि यहां से आप ताजे फल, आर्गेनिक सब्जियां खरीद सकते हैं। इस बाजार में अलग-अलग किस्म का पनीर भी मिलता है, जिसमें याक के दूध से बना अल्पाइन चीज और छुरपी (विशेष किस्म का पनीर) शामिल है। इसके अलावा सैलानी यहां से मिट्टी के बर्तन, प्रार्थना की झंडिया, नेपाली चाकू तथा बांस और बेंत से बनी टोकरियां भी खरीद सकते हैं। यह कुछ इस तरह की वस्तुएं हैं, जिन्हें आप अपने संबंधियों के लिए उपहार के रूप में यहां से खरीद सकते हैं। आर्किड्स फूल, सिक्किम का प्रतीक चिन्ह माना जाता है और इस बाजार में आर्किड की विभन्न किस्मे मिलती हैं। वैसे सर्दियों के मौसम में यहां आर्किड की सबसे ज्यादा किस्में देखने को मिलती हैं। अगर आप रविवार के दिन इस बाजार में आएंगे तो यहां का नजारा अन्य दिनों के मुकाबले बिलकुल बदला हुआ दिकाई देगा। क्योंकि रविवार को दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। तब यह बाजार ऐसा लगता है मानो गंगटोक में तिब्बती संस्कृति की कोई प्रदर्शनी लगी हुई है। लाल बाजार की स्थापना सन 1956 में हुई थी और वर्तमान में इसे कंचनजंगा शापिंग काम्पलेक्स के नाम से जाना जाता है। 

लाल बाजार