विशाल क्षेत्र में फैला यह किला उन पुराने सात शहरों में से यह छठा शहर था, जिस पर आज की आधुनिक दिल्ली खड़ी है। यह 16 वीं शताब्दी में बने एक पत्थर का किला है। महाकाव्य महाभारत में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है और कहा जाता है कि इसके पास ही इंद्रप्रस्थ के प्रसिद्ध शहर के अवशेष हैं। किले में उत्खनन से पता चलता है कि यह क्षेत्र लगभग 300 ईसा पूर्व काल से बसा हुआ है। कुछ हद तक आयताकार रूप में बने इस किले की मोटी दीवारों पर कंगूरे बने हैं, और इसके तीन द्वार हैं जिसके दोनों ओर गढ़ बने हैं। प्राचीन काल में, यह किला एक विस्तृत खाई से घिरा हुआ था, जो यमुना नदी से जुड़ा हुआ था। कहते हैं कि उस वक्त यमुना किले के पूर्व में बहती थी। इसका उत्तरी द्वार इस्लामी नुकीले मेहराब और हिंदू छत्रियों और कोष्ठकों का मिश्रण है। किले की दीवारें और प्रवेश द्वार मुगल सम्राट हुमायूं द्वारा बनवाये गए थे और किले के काम को शेर शाह सूरी ने आगे बढ़ाया था। शेर शाह सूरी ने 16 वीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली पर शासन किया था और उसने हुमायूं को हराया था। इसके अंदर एक सीढ़ीदार बाउली है, एक बड़ा दुर्ग है जिसे पुस्तकालय-सह-वेधशाला और एक मस्जिद के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। हुमायूँ ने सन् 1533 में इसका निर्माण कार्य शुरू करवाया था, लेकिन कुछ वर्षों के बाद शेर शाह के हाथों उन्हें हार का मुह देखना पड़ा था। लगभग 15 साल बाद, हुमायूँ ने फिर इस किले पर कब्जा कर लिया था। लेकिन उसके कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु पुस्तकालय की सीढ़ियों से नीचे गिरने से हो गई। हर शाम आयोजित किए जाने वाले एक शानदार लाइट एंड साउंड शो में इस किले की कहानी को प्रदर्शित किया जाता है।

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