देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि के रूप में
खड़ी यह इमारत, दिल्ली के प्रतिष्ठित स्थलों में से एक है। इंडिया गेट का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है, और इसकी उंचाई 42 मीटर है। यह इमारत राष्ट्रीय राजधानी में बनी अपनी तरह की पहली इमारत है, जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था। सन् 1919 के अफगान युद्ध में, उत्तरी पश्चिमी सीमा पर मारे गए 13,516 सैनिकों और प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सेना के 90,000 सैनिकों के नामों को इंडिया गेट की दीवारों पर अंकित किया गया है। स्मारक के आधार का निर्माण भरतपुर के लाल रंग के पत्थरों से किया गया है। इंडिया गेट की संरचना फ्रांस की संरचना, आर्क-द-ट्रायम्फ के समान है। इंडिया गेट हरे-भरे बागानों से घिरा हुआ है, जो परिवारों के साथ पिकनिक मनाने के स्थल के रूप में काफी लोकप्रिय है। इस स्मारक पर जाने का सबसे अच्छा समय रात के वक्त होता है। रात के समय इंडिया गेट सुनहरी रोशनी में नहाया हुआ लगता है और अंधेरे आकाश में इसकी चमक और निखर कर आती है। इस भव्य स्मारक की आधारशिला सन् 1921 में ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई थी, जिसे ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियन्स द्वारा डिजाइन किया गया था। इन्होंने ही नई दिल्ली की कई औपनिवेशिक संरचनाओं को भी डिजाइन किया था। एक दशक बाद, यह स्मारक तत्कालीन वाइसराय, लॉर्ड इरविन द्वारा भारत को समर्पित किया गया था। संगमरमर से बनी 'अमर जवान ज्योति', इंडिया गेट के समक्ष स्थित है और इसका निर्माण वर्ष 1971 में किया गया था। इसे वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान प्राण न्योछावर करने वाले बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए इसे बनाया गया था। इसमें जलने वाली लौ की पहरेदारी वर्दीधारी सैनिकों द्वारा अनवरत की जाती है। लौ के समीप एक चमकती हुई राइफल गड़ी है, जिसके ऊपर सैनिक का एक हेलमेट रखा हुआ है। इंडिया गेट पर गणतंत्र दिवस के दिन एक भव्य परेड का आयोजन होता है, और इस दिन राष्ट्रपति अमर जवान ज्योति पर माल्यार्पण करते हैं। यह परेड राजपथ (जिसे पहले किंग्सवे कहा जाता था) पर आयोजित की जाती है। यह एक काफी चौड़ी सड़क है, जो इंडिया गेट से होकर गुजरती है।

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