दिल्ली की दिल की धड़कन कहा जाने वाला, कनॉट प्लेस एक विरासत स्थल है, जिसे जियोरजियन शैली की वास्तुकला में निर्मित किया गया है। भोजनालयों, उच्च श्रेणी की दुकानें, पार्लर, थिएटर और बुक स्टोर के साथ साथ, यह बाजार दिल्ली में अधिकांश गतिविधियों का केंद्र है। दो संकेंद्रित वृतों में फैले कनॉट प्लेस का एक विंटेज चरित्र है, पर वहीं उसके विपरीत यहां अनेक आधुनिक दुकानें और कैफ़ें मौजूद हैं जो तीक्ष्ण नियोन लाइट से प्रकाशित रहते हैं। किसी भी दिन, यहां आपको अनेक छात्र-छात्राएं और ऑफिस कर्मचारी सड़कों पर घूमते, चाट की थाली और सुखद मौसम का आनंद लेते हुए दिख जाएंगे। कनॉट प्लेस में स्टॉल और स्टोर्स के आने से पहले, यह एक सिनेमा सेंटर हुआ करता था। सन् 1920 के दशक में, रूसी बैले, उर्दू नाटक और मूक फिल्मों को यहां विभिन्न थिएटरों में प्रदर्शित की जाती थी। रिवोली और ओडियन जैसे विरासती सिनेमाघर अभी भी अपनी प्राचीनता को संरक्षित रखे हुए हैं। इन बड़े फिल्म थिएटरों में फिल्म देखने का अपना एक अलग ही रोमांच है। कनॉट प्लेस का एक और मुख्य आकर्षण यहां का हनुमान मंदिर है, माना जाता है कि यह उतना ही प्राचीन है जितना इसके आस पास का इलाका। दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित वाले इस मंदिर का उल्लेख महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है। इस मंदिर का नाम गिन्नीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल है, जिसमें उपासकों ने यहां 24 घंटे तक लगातार 'श्री राम जय राम जय राम' मंत्र का जाप किया था। हलचल से भरे इस बाजार के बीच एक शांत स्थान है, गुरुद्वारा बंगला साहिब, जो संभवतः कनॉट प्लेस का सबसे लोकप्रिय आकर्षण है। एक मील की दूरी से ही इसका धूप में चमकता सुनहरा गुंबद दिखाई देता है। जैसे ही आप इसके परिसर में प्रवेश करते हैं, आपको एक अद्भुत शांति की भावना का एहसास होता है। इसके गर्भगृह में श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद, आप गुरुद्वारे के शांत और खूबसूरत तालाब के चारों ओर टहल सकते हैं। सघन नक्काशी से सज्जित यह प्राचीन सफेद इमारत, गुरुद्वारा बंगला साहिब एक दर्शनीय स्थल है। पर्यटक नजदीक के जंतर मंतर पर भी जा सकते हैं, जो उत्तर भारत की पांच खगोलीय वेधशालाओं में से एक है। यह अपनी बेजोड़ ज्यामितीय संरचना के अद्भुत संयोजन के कारण दुनिया भर के आर्किटेक्ट, कलाकारों और कला इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित करता है। कनॉट प्लेस का सेंट्रल पार्क एक अन्य मुख्य आकर्षण है, जहां विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित किया जाता है। यहां हरे-भरे बगीचे हैं, जहां कई फव्वारे लगे हुए हैं और यहां आपको देश का सबसे ऊंचा लहराता हुआ झंडा भी दिख जाएगा। कनॉट प्लेस की इस भव्य हाथीदांत की सफेदी वाली संरचना सन् 1929 में अंग्रेजों द्वारा लुटियन्स की दिल्ली में स्थानांतरित करने के लिए बनाया गई थी। इसका नाम कनॉट के पहले ड्यूक के नाम पर रखा गया है, जो रानी विक्टोरिया का बेटा था। यह दुनिया के सबसे महंगे ऑफिस इलाकों में से एक है, और अपने पर्यटकों को विविधता का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है। एक ऐतिहासिक संरचना से लेकर दुकानदारों का स्वर्ग तक कहा जाने वाला यह स्थान, किसी की भी दिल्ली यात्रा का एक अभिन्न भाग होना ही चाहिये।

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