धातुशिल्प बीदरवेयर हैदराबाद के पास बसे बीदर का गौरव है, और एक बहुप्रशंसित स्वदेशी हस्तकला परंपरा है। इसके अंतर्गत शुद्ध चांदी या पतली चादर के साथ जड़ कर जस्ता और तांबे पर कलाकारी का काम किया जाता है, यह एक अत्यधिक नाजुक और उल्लेखनीय रूप से जटिल कला है। बिदरी वस्तुएं हैदराबाद की अधिकांश कला और शिल्प की दुकानों में पाई जा सकती हैं और स्थानीय हेरिटेज टूर कंपनियों द्वारा बीदर के लिए नियमित पर्यटन यात्राएँ आयोजित की जाती हैं, जहां आगंतुक इन कारीगरों को काम करते देख सकते हैं।  

इस कला रूप की उत्पत्ति बहमनी सुल्तानों के शासनकाल के दौरान हुई थी, जिन्होंने 14 वीं और 15 वीं शताब्दी में बीदर पर शासन किया था। इसे फ़ारसी, अरबी और तुर्की कलासज्जाओं का संलयन कहा जाता है। हालांकि इसे साबित करने के लिए कोई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी कई लोग मानते हैं कि इस कलारूप को 12 वीं शताब्दी में इस्लामी प्रचारक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के अनुयायियों द्वारा भारत में लाया गया था। 

इन सुंदर वस्तुओं को बनाने की जटिल प्रक्रिया के अंतर्गत 16: 1 के अनुपात में जस्ता और तांबे की मिश्रित धातु इसमें प्रयुक्त होने वाली प्राथमिक सामग्री है। फिर, इस मिश्रित धातु पर कलात्मक रूपलेख उकेरे जाते हैं, और इस प्रक्रिया के आठ चरण होते हैं। सबसे पहले, इस मिश्रित धातु को ढाला जाता है, फिर उसे एक रंदे की मदद से चिकना और एकसार किया जाता है। इसके बाद इस पर छैनी की मदद से नक्काशी की जाती है। सबसे अद्भुत कदम इस पर चांदी की परत को बिछाना है, जिसके बाद अमोनियम क्लोराइड और मिट्टी द्वारा उत्पाद को फिर से चिकना और एकसार किया जाता है और फिर आखिरकार इसे ऑक्सीकृत किया जाता है। माना जाता है कि इस मिट्टी के रसायन उत्पादों को चमकदार काला रंग देते हैं। यहाँ खरीदी जा सकने वाली सुन्दर वस्तुओं में गुलदान, कटोरे, मोमबत्ती के खाँचे, आभूषण बक्से, शराब की सुराहियाँ और हुक्के शामिल हैं। 

अन्य आकर्षण