कमल बसती

बेलगाम किला परिसर के भीतर स्थित, कमल बसती एक जैन मंदिर है जिसका निर्माण 1204 ईस्वी में राल्टा वंश के राजा कार्तवीर्य चतुर्थ के राजपुरोहित बिची राजा ने करवाया था। उत्तरवर्ती चालुक्य शैली में निर्मित यह मंदिर अपनी मीनार के लिए प्रसिद्ध है, जो 72 पंखुड़ियों वाले विशाल कमल पुष्प से सुशोभित है। इस मंदिर की छत को 24 जैन तीर्थंकरों की छवियों से सुसज्जित किया गया है, तथा इसके गर्भगृह में 22वें तीर्थंकर निमिनाथ जी की एक काले पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ, भगवान आदिनाथ और भगवान सुमतिनाथ के चित्रों के साथ-साथ नवग्रहों या नौ ग्रहों के चित्र भी हैं। पर्यटक चिक्की बसती नामक एक अन्य जैन मंदिर के अवशेष भी देख सकते हैं।

कमल बसती

सैन्य महादेव मंदिर

एक सुंदर और सुव्यवस्थित बगीचे के मध्य में स्थित, सैन्य महादेव मंदिर बेलगाम का एक प्रमुख आकर्षण है और शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग के साथ भगवान शिव की एक बड़ी छवि स्थापित है। शिवलिंग के सामने नंदी (बैल देवता) की 2 मूर्तियाँ भी देखी जा सकती हैं। इस मंदिर की आधारशिला 1954 में रखी गई थी और इसका उद्घाटन 1955 में भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एसएम श्रीनागेश ने किया था। मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया जा चुका है और इसकी मूल शैली को बरकरार रखते हुए एक नया गुंबद बनाया गया है। यह मंदिर कलात्मक नक्काशी से सुसज्जित है जो दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में की गई सुन्दर नक्काशी के समान है। इस मंदिर का लंबे समय से सेना के जवानों द्वारा पूजा स्थल के रूप में उपयोग किया जाता रहा है, यही कारण है कि इसे सैन्य महादेव मंदिर कहा जाता है। भक्त मंदिर के पास स्थित एक लघु चिड़ियाघर देखने भी जा सकते हैं, जिसमें हिरण और ईमू रहते हैं। इस मंदिर में सप्ताह के सातों दिन सुबह 6 से रात 8 बजे तक दर्शन किए जा सकते हैं।

सैन्य महादेव मंदिर

सोगल

शहर के बाहरी इलाके में स्थित सोगल अपने मंदिरों, झरनों और प्राकृतिक सुंदरता के कारण कर्नाटक के सभी हिस्सों से आगंतुकों को आकर्षित करता है। सोगल में सबसे लोकप्रिय आकर्षण सोमेश्वर मंदिर है, जो राष्ट्रकूटों (6ठी शताब्दी ईसवी से 10वीं शताब्दी ईसवी) द्वारा बनाया गया था और अतीतकाल काल में धार्मिक शिक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित एक लोकप्रिय लोककथा के अनुसार धार्मिक उपदेश सुनने के लिए बाघ भी सोगल जाया करते थे। मंदिर का भ्रमण करने के बाद, पर्यटक सोगल जलप्रपात की ओर जा सकते हैं, जो 60 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है और एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। यहाँ के सुरम्य परिवेश के बीच स्थित सोगल जलप्रपात एक पहाड़ी से नीचे गिरता है और इसके सान्निध्य में पर्यटकों को पर्वतारोहण तथा शिविर लगाने जैसी विभिन्न रोमांचक गतिविधियों में लिप्त होने के अवसर उपलब्ध हैं।

सोगल

हलासी

इस क्षेत्र पर 500 वर्षों से अधिक समय तक शासन करने वाले कदंब वंश की राजधानी रहा हलासी कर्नाटक का एक प्रमुख भ्रमण केन्द्र है जो अपने प्राचीन मंदिरों के कारण बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। हलासी में भुवरहा लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर सबसे लोकप्रिय आकर्षण है। 5वीं शताब्दी ईसवी के दौरान बनाया गया यह मंदिर वास्तुकला की कदंब शैली का एक सुन्दर नमूना है। मंदिर परिसर एक पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है जिसके चारों तरफ दरवाजे मौजूद हैं। मुख्य मंदिर का पिरामिड आकृति का शिखर है वास्तुकला की कदंब शैली के अनुसार बनाया गया है और इसकी चोटी पर एक सुसज्जित कलश स्थापित है। इस मंदिर में दो गर्भगृह हैं। पहले वाले घर में भगवान विष्णु की चार फुट ऊंची मूर्ति विराजमान है। मुख्य मूर्ति के ठीक पीछे भगवान सूर्यनारायण और देवी महालक्ष्मी की मूर्तियाँ हैं। दूसरे गर्भगृह में भुवराह स्वामी की मूर्ति है। हलासी के अन्य महत्वपूर्ण आकर्षणों में भगवान गोकर्णेश्वर, भगवान कपिलेश्वर, भगवान स्वर्णेश्वर और भगवान हतकेश्वर को समर्पित मंदिर शामिल हैं। हलासी बेलगाम से 42 किमी की दूरी पर स्थित है और एक बेहतरीन भ्रमण स्थल है।

हलासी

येलुर

बेलगाम के बाहरी इलाके में येलुरगढ़ की तलहटी में स्थित येलुर एक प्रमुख पर्यटक केन्द्र है जो अपने प्राचीन मंदिरों, हरे-भरे जंगलों और प्राचीन समुद्र तटों की ओर आगंतुकों को आकर्षित करता है। येलुर में सबसे लोकप्रिय आकर्षण एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो एक हजार साल से भी अधिक पुराना है। इस मंदिर को येलुर श्री विश्वेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और अपने नारियल अभिषेकम के लिए प्रसिद्ध है, जिसके माध्यम से मंदिर जाने वाले श्रद्धालु भगवान शिव या विश्वेश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। देश के सभी हिस्सों से आए भक्त यहां सोने के सिक्के समर्पित कर और मिट्टी के दीपक जला कर भगवन शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। देवायतन शैली की वास्तुकला के अनुरूप निर्मित इस मंदिर की भव्य संरचना न केवल भगवान शिव के भक्तों को बल्कि दुनिया के प्रत्येक भाग से पुरातत्व और इतिहास प्रेमियों को भी आकर्षित करती है। भक्त इसी मंदिर परिसर में अलग-अलग स्थापित देवी अन्नपूर्णेश्वरी और भगवान विनायक के मंदिरों में भी जा सकते हैं। मंदिर के उत्तरी भाग में एक सुंदर झील भी है, साथ ही एक मंदिर भी जो देवी भागीरथी को समर्पित है। यहाँ एक लोकप्रिय मान्यता है कि गंगा नदी कभी उस स्थान से बहती थी जहां आज यह झील स्थित है। येलूर सिर्फ अपने मंदिर की पगडंडियों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है। रोमांचप्रेमी पर्यटक यहाँ के कुंदरमुख राष्ट्रीय उद्यान में भी जा सकते हैं। बाघ और शेर जैसी पूंछ वाले मकाक बंदर जैसी विभिन्न प्रकार की पशु प्रजातियों की निवासस्थली बना यह राष्ट्रीय उद्यान समृद्ध जैव विविधता से भरपूर है और प्रकृति तथा वन्यजीव प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यदि आप येलूर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साक्षी बनना चाहते हैं, तो एक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित येलूर किले का भ्रमण अवश्य करें। बेलगाम के लगभग सभी हिस्सों से सीधे दिखने वाला यह ऐतिहासिक किला आपको अपनी भव्य वास्तुकला और वहाँ से दिखते बेलगाम शहर के सुंदर विहंगम दृश्यों से मोह लेगा।

येलुर