अनंतपुरा झील मंदिर

अनंतपुरा झील मंदिर, एक झील के बीच में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित सुंदर 9 वीं शताब्दी का मंदिर है। यह केरल का एकमात्र झील मंदिर है और इसे भगवान अनंतपद्मनाभ का मूल निवास माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए भक्तों को एक पुल को पार करना पड़ता है। झील मंदिर के आसपास पहाड़ियों और ताड़ और नारियल के पेड़ों के अद्भुत नज़ारे दिखाई देते हैं। यह भव्य मंदिर इस झील में निवास करने वाले एक 150 साल आयु के मगरमच्छ के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसे बाबिया/बाबिया कहा जाता है और इस मंदिर का संरक्षक माना जाता है। मंदिर के दर्शनार्थी इस प्रसिद्ध मगरमच्छ की एक झलक पाने के लिए बेसब्र रहते हैं। अनंतपुरा झील मंदिर, बेकल से 30 किमी की दूरी पर स्थित है और इस मंदिर तक पहुँचने का रास्ता बहुत सुरम्य और आनंददायक है।

अनंतपुरा झील मंदिर

उल्लाल

उल्लाल नाम का अनोखा नगर अपनी धार्मिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। इसका मुख्य आकर्षण सोमनाथेश्वर मंदिर है, जो अरब सागर के तट पर स्थित है। 16 वीं शताब्दी में रानी अब्बाका देवी के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर अपनी अद्वितीय दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शांतिपूर्ण परिवेश के कारण आगंतुकों को आकर्षित करता है। इसका एक अन्य आकर्षण सैय्यद मदनी की दरगाह है, जहाँ 400 साल पहले मदीना से यहाँ आए तथा अध्यात्म के माध्यम से गरीबों की मदद करने वाले सूफी फ़क़ीर सैय्यद मदनी की कब्र स्थित है। इस दरगाह पर उर्स त्योहार के दौरान तीर्थयात्रियों का हुजूम लगता है। यह त्यौहार हर पांच साल में एक बार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पर्यटक 1926 में स्थापित सेंट सेबेस्टियन चर्च में भी जा सकते हैं। यह मैंगलोर के आसपास स्थित सबसे प्रसिद्ध चर्चों में से एक है और अपनी शानदार वास्तुकला से पर्यटकों को आकर्षित करता है। उल्लाल के अन्य महत्वपूर्ण स्थानों में उल्लाल जामा मस्जिद भी शामिल है, जिसे फ़क़ीर सैय्यद मोहम्मद शरीफुल मदनी की याद में बनाया गया था।

उल्लाल इस देश के सबसे पुराने शहरों में से है, और कभी तुलु साम्राज्य की राजधानी था। 15 वीं शताब्दी के दौरान यहाँ पुर्तगालियों का शासन था और उसके प्रभाव को पूरे शहर में देखा जा सकता है। 

उल्लाल

मलिक दीनार मस्जिद

केरल की पारंपरिक वास्तुकला शैली में निर्मित ऐतिहासिक मलिक दीनार मस्जिद को भारत में आने वाले पहले ज्ञात मुसलमानों में से एक मलिक इब्न दीनार द्वारा स्थापित किया गया था। प्रतिवर्ष यहाँ मलिक दीनार और उनके साथी व्यापारियों के समूह के भारत आगमन की स्मृति में एक भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। किंवदंती है कि 1,500 साल पहले दीनार और उनके 12 साथी मुस्लिम भारत में आए, तथा अपने साथ अपना मज़हब भी लेकर आए। मलिक दीनार मस्जिद का निर्माण 642 ईस्वी में पश्चिमी गंगा राजवंश के राजा चेरमन पेरुमल के शासनकाल में किया गया था। इस मस्जिद के निर्माण में लकड़ी के स्तंभों पर अरबी नक्काशी का प्रयोग किया गया था, जिसकी खूबसूरती देखने लायक है। यह मस्जिद विशेष रूप से उर्स समारोह के उत्सव के दौरान ज़बर्दस्त भीड़ से गुलज़ार होती है।

मलिक दीनार मस्जिद

मल्लिकार्जुन मंदिर

नारियल और ताड़ के लहराते हुए वृक्षों की छाँव में स्थित सुंदर मल्लिकार्जुन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और तीर्थयात्रियों को अपनी शानदार वास्तुकला और शांत वातावरण की ओर आकर्षित करता है। मंदिर के समीप बहने वाली कुम्बला नदी इस स्थान की सुरम्य सुंदरता में और अधिक वृद्धि करती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति को हिंदू धर्मग्रन्थ महाभारत में वर्णित पांडवों में से एक अर्जुन द्वारा स्थापित किया गया था। यह मंदिर हर साल मार्च के महीने में वार्षिक जात्रा महोत्सव का आयोजन करने के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक यक्षगान प्रदर्शन है, जो हर शाम इसके परिसर में आयोजित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, इस मंदिर का एक अन्य आकर्षण वार्षिक गणेश चतुर्थी समारोह है जिस में राज्य के सभी हिस्सों से हजारों तीर्थयात्रियों भाग लेते हैं। मल्लिकार्जुन मंदिर कासरगोड शहर के केंद्र में स्थित है और बेकल से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है।

मल्लिकार्जुन मंदिर