दुनिया में लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सर्वप्रथम गणतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित वैशाली एक पुरातात्विक स्थल है, जिसका कालखंड 500 ईसा पूर्व से प्रारंभ होकर चार भागों में विभाजित होकर लगभग एक हजार साल का है, और इस बात के साक्ष्य यहाँ प्राप्त होने वाली टेराकोटा की वस्तुओं, सिक्कों, मुहरों, मंदिरों और स्तूपों से प्राप्त होते हैं। वैशाली में सबसे महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण कोल्हुआ है, जहां एक विशाल लोहे का स्तंभ स्थापित है। माना जाता है कि इसका निर्माण मौर्य वंश के सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था। इंटों से बने एक स्तूप के ठीक बगल में स्थित इस स्तंभ का निर्माण भगवान बुद्ध के अंतिम उपदेश की स्मृति में किया गया था। कहा जाता है कि जहाँ आज इस मठ के खंडहर स्थित हैं, कभी वहाँ भगवान बुद्ध निवास किया करते थे। पर्यटक वैशाली संग्रहालय में भी जा सकते हैं, जो इतिहास एवं पुरातत्व में रूचि रखने वाले लोगों को आकर्षित करता है। इस संग्रहालय में उन उत्खनित वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित की गई है जिन्हें वैशाली के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों पर खोजा गया था। इस संग्रहालय के ठीक बगल में, एक गोलाकार टिन शेड के नीचे उस स्तूप के अवशेष स्थित हैं, जहाँ मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान बुद्ध के पार्थिव शरीर की भस्म को रखा गया था। अभिषेक पुष्करणी के नाम से विख्यात लिच्छवी शासकों का अभिषेक सरोवर इस संग्रहालय के पास स्थित एक प्रमुख आकर्षण है। 

वैशाली लिच्छवी वंश (400 से 750 CE) की राजधानी थी, और यद्यपि पाटलिपुत्र (पटना) मौर्य और गुप्त राजवंशों का केन्द्र था, इसके बावजूद वाणिज्य और उद्योग यहाँ कहीं अधिक प्रबलता से विकसित हुए।

पर्यटक राजा विशाल-का-गढ़ के उत्खनन स्थल पर भी जा सकते हैं, जहाँ उस प्राचीन संसद भवन के अवशेष हैं जिस में कभी लिच्छवी सरकार की संघीय सभा ने महत्वपूर्ण बैठकें कीं थीं। इसके नज़दीक एक और लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण बावन पोखर मंदिर है, जो पाल काल (8 वीं से 12 वीं शताब्दी) से सम्बद्ध है। बावन पोखर सरोवर के उत्तरी किनारे पर स्थित यह मंदिर विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं की छवियों से सुसज्जित-सुशोभित है। अपनी यात्रा का समापन दुनिया के सबसे ऊंचे स्तंभों में से एक, विश्व शांति स्तूप या शांति स्तंभ को देख कर करें, जिसका निर्माण जापानी सरकार के समर्थन से भारत सरकार द्वारा करवाया गया है।

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