यह सुंदर बाग यमुना नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है तथा नदी के पार बने ताजमहल के बागों की सिधाई में बना हुआ है। 300 वर्गमीटर से भी अधिक क्षेत्रफल में फैला महताब बाग कई पेचीदा खुदाई का स्थल रह चुका है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार यह बाग मुग़ल शासक बाबर द्वारा नदी के किनारे पर बनाए गए श्रृंखलाबद्ध 11 सुंदर बागों की कड़ी में अंतिम बाग था। अंततः यह उपेक्षा व अव्यवस्था का शिकार हो गया था। ताजमहल को यमुना नदी के पार बहती रेत के कटाव से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए इस बाग का पुनः निर्माण किया गया। संगमरमर से बने इस अद्भुत आश्चर्य को देखने तथा तस्वीरें खींचने के लिए अब यह एक रमणीक सुविधाजनक स्थल के रूप में उपलब्ध है। इसके प्रवेश द्वार से दिखने वाला परिदृश्य विशेषरूप से सुंदर लगता है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। 

ऐसा माना जाता है कि यद्यपि इनका निर्माण बाबर ने किया था किंतु शाहजहां ने ही इन्हें सुविधाजनक स्थल के रूप में पहचाना, जहां से ताजमहल को देखा जा सकता था। उसी ने इसका नाम अर्थात् चांदनी में देखने वाला बाग दिया था। यहां स्थित पगडंडियां, फव्वारे, मंडप एवं तालाब इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। यहां पर अनेक फलदार पेड़ लगाए गए थे। ऐसा माना जाता है कि उस समय महताब बाग का निर्माण ताजमहल परिसर के रूप में किया गया था, मानो यह नदी पार परिसर का ही आंगन हो। ऐसी मिथक बातों का उल्लेख मिलता है कि इस बाग में शाहजहां ‘काला ताजमहल’ भी बनवाना चाहता था। माना जाता है कि महताब बाग ही वह स्थान था जहां पर वह अपने लिए काले संगमरमर का मकबरा बनावाना चाहता था, जो ताजमहल की हूबहू झलक होती और उसकी पत्नी के मकबरे के ठीक सामने बनवाया जाता। किंतु औरंगजे़ब ने उसकी इच्छा का दमन कर दिया, जिसने उसे उसकी अंतिम सांस तक कैदखाने में डाल दिया था। 

बीते अनेक वर्षों में इस स्थान पर अनेक बार खुदाई का काम किया गया जिसमें अनेक निर्माणकार्यों का पता चला। जैसे 25 फव्वारों वाले अष्टकोणीय एक बड़े तालाब, जलकुंड तथा चारबाग का पता चला था। असल में, मुमताज़ महल का मकबरा ताजमहल के मुख्य प्रवेशद्वार एवं मेहताब बाग के अंत के बीच में मिला था। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस बाग का बारीकी से जीर्णोद्धार किया गया था। प्राकृतिक छटा बिखेरने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कलाकारों ने बाग के मूलरूप से मेल खाते हुए पुनः पेड़, झाड़ियां तथा पौधे लगाने का कार्यभार उठाया। इसके लिए उन्होंने कश्मीर के शालीमार बाग जैसे नदी किनारे स्थित बागों का अध्ययन किया। मुग़लकालीन बागवानी से लगभग 80 पौधों की पहचान की गई तथा अमरूद, गुड़हल, नीम, जामुन एवं अशोक के वृक्ष लगाए गए। वर्तमान में महताब बाग अपनी भव्यता में प्राचीनता लिए हुए है तथा उसकी महिमा पहले की भांति बहाल है।

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