बेनुबन विहार

बेनुबन विहार त्रिपुरा के सबसे प्रमुख बौद्ध आकर्षणों में से एक है। यह भगवान बुद्ध और बोधिसत्व की उन धातु की मूर्तियों के लिए जाना जाता है, जो बहुत पहले बर्मा में बनाई गई थीं। इस मंदिर की उत्पत्ति का इतिहास अज्ञात है। विहार का मुख्य आकर्षण बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार है जिसे प्रचंड ऊर्जा और शक्ति के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा, यह जगह पेड़ों के एक घने झुरमुट से घिरी हुई है जो आगंतुकों को शांति की भावना प्रदान करता है, जिससे मंदिर और अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता है। मंदिर की संरचना में एक विशिष्ट त्रिपुरी शैली की वास्तुकला का प्रभाव है और इसका लाल रंग का गर्भगृह भगवान बुद्ध को समर्पित है। बेनुबन विहार कुंजाबन क्षेत्र में स्थित है।

बेनुबन विहार

जगन्नाथ मंदिर

जगन्नाथ मंदिर, अगरतला में उज्जयंत महल के बगल में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह वास्तुकला की हिंदू और अरबी शैलियों के सुंदर व अद्भुत संलयन का एक बेहतरीन नमूना है। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा को समर्पित यह मंदिर देश-विदेश से हजारों आगंतुकों को आकर्षित करता है। कहा जाता है कि पुरी में स्थापित भगवान जगन्नाथ या नील महादेव की मूर्ति इस मंदिर द्वारा दान की गई है। इस मंदिर की वास्तुकला भी उल्लेखनीय है, जिसकी संरचना को चमकीले नारंगी संरचित शिखरों से सजाया गया है और इसके स्तंभ चौकोर और पिरामिडनुमा कोणीय आकृतियों से सुसज्जित किया गया है। इसका एक अन्य आकर्षण भगवान कृष्ण के जीवन की सुंदर लीला का चित्रण तथा मंदिर में स्थापित की गई हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। यह मंदिर अगरतला के बाहर से आने वाले भक्तों के लिए अपने परिसर में ही आवास की सुविधा प्रदान करता है। 19 वीं शताब्दी में माणिक्य वंश के महाराजा राधा किशोर माणिक्य द्वारा इस जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया गया था।

जगन्नाथ मंदिर

कमलासागर काली मंदिर

कमलासागर काली मंदिर जोकि कस्बा काली बाड़ी के नाम से भी जाना जाता है, एक पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी पर कमलासागर नामक पानी का एक बड़ा कुंड है। बलुआ पत्थर से बनी महिषासुरमर्दिनी (देवी काली) की यहाँ स्थापना की गई है। इस मंदिर का एक और अनोखा पहलू देवी दशभुजा दुर्गा के चरणों में स्थापित शिवलिंग है। देश के विभिन्न हिस्सों और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से हजारों तीर्थयात्री विभिन्न त्योहारों के दौरान इस पवित्र मंदिर में आते हैं। कमला सागर झील, मंदिर के साथ-साथ इस जगह की सुंदरता को भी बढ़ाती है, जिससे यह विश्राम करने और परिवार के साथ कुछ सुंदर क्षण बिताने के लिए एकदम सही जगह है। यह मंदिर 15 वीं शताब्दी में माणिक्य वंश के महाराजा धन्या माणिक्य द्वारा बनाया गया था और इसका निर्माण कार्य अंततः स्थानीय शासकों द्वारा 17 वीं शताब्दी में पूरा किया गया था। यह अगरतला से लगभग 27 किमी दूर स्थित है।

कमलासागर काली मंदिर

त्रिपुर सुंदरी मंदिर

त्रिपुर सुंदरी मंदिर अगरतला से 55 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य देव ने 1501 ईस्वी में किया था, और इसे भारत में हिंदू तीर्थयात्रियों के 51 शक्ति पीठस्थानों में से एक माना जाता है। इस जगह का धार्मिक महत्व काफी विशिष्ट है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी सती का दाहिना पैर भगवान शिव के तांडव नृत्य के दौरान यहां गिरा था।

मंदिर की संरचना में एक शंक्वाकार गुंबद के साथ ही विशिष्ट बंगाली-झोपड़ी शैली में निर्मित एक वर्गाकार गर्भगृह स्थित है। यह एक पहाड़ी पर शानदार तरीके से निर्मित भवन है, जिसके अंदर एक ही देवी की दो एकरूप प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। त्रिपुर सुंदरी के इस मंदिर में देवी काली की मूर्ति को सोरोशी के रूप में पूजा जाता है। हर साल मंदिर के पास एक प्रसिद्ध दीवाली मेला आयोजित किया जाता है जिस में दो लाख से भी अधिक तीर्थयात्रियों का जनसमूह एकत्रित होता है।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर

भुवनेश्वरी मंदिर

भुवनेश्वरी मंदिर अगरतला में स्थित एक लोकप्रिय आध्यात्मिक स्थल है जिसका उल्लेख रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास ‘राजर्षि’, और उनके ही नाटक ‘बिसर्जन’ में किया गया है। गोमती नदी के तट पर अगरतला से लगभग 55 किमी दूर स्थित यह मंदिर देवी भुवनेश्वरी को समर्पित है। लगभग 3 फुट ऊंचे समतल भूमिमंच पर स्थित इस मंदिर की संरचना में चार चाला छत, प्रवेश द्वार पर स्थित स्तूप और एक प्रमुख कक्ष शामिल हैं। इसकी वास्तुकला का मुख्य आकर्षण फूलों की आकृतियों से सुसज्जित रूपांकन हैं जो इसके स्तंभों और स्तूपों को सुशोभित करते हैं। आज यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की देखरेख में है। इस मंदिर तक पहुँचने के रास्ते में माणिक्य वंश के महाराजा गोविंदा माणिक्य के महल के खंडहरीय अवशेष प्राप्त होते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने इसे 17 वीं शताब्दी में बनाया था।

भुवनेश्वरी मंदिर