कुछ नदियों को देवतुल्य मान कर उनकी पूजा की जाती है , जबकि कुछ नदियाँ अपने आस-पास रहने वालों के लिए जीवन-रेखा हैं। भारत में नदियों के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि देश का नामकरण ही सिन्धु नदी के नाम पर हुआ जिसका उल्लेख भारतीय महाकाव्यों में मिलता है। भारत के उत्तरी भाग में बहने वाली सिन्धु नदी के किनारे ही सिन्धु घाटी की सभ्यता पल्लवित हुई।भारत में नदियाँ न केवल प्राकृतिक चमत्कार हैं बल्कि पवित्रता का निवास स्थल भी है। इनमें सप्त-सिन्धु अर्थात सात पवित्र नदियाँ - गंगा, यमुना,सरस्वती,गोदावरी, कृष्णा , ब्रह्मपुत्र और नर्मदा -विशेष महत्वपूर्ण हैं।

पश्चिमी हिमालय के आलिशान गंगोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली पवित्रतम नदी गंगा देश की लम्बी नदियों में से एक है। भागीरथी , जो उत्तराखण्ड में अपने उद्गम स्थल से लेकर देवप्रयाग तक इसी नाम से जानी जाती है , देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल कर गंगा कहलाती है। प्रयागराज में आकर ये दोनों यमुनोत्री से निकलने वाली देश की दूसरी पवित्रतम नदी यमुना से मिलती हैं। संगम या प्रयागराज वह पवित्र धर्मिक स्थल हैं ,जहाँ डुबकी लगा कर मनुष्य सोचता है कि उसे हर पाप से मुक्ति मिल गई। संगम पर होने वाली गंगा आरती ,जिसमें असंख्य मिट्टी के दीए जल में प्रवाहित किए जाते हैं , एक भव्य नजारा पेश करती है। प्रयाग राज कुम्भ मेले की वजह से भी विख्यात है जिसे हम विश्व का विशालतम समागम कह सकते हैं।गंगा पश्चिम बंगाल के सुन्दर वन के डेल्टा में गिरती है और ब्रह्मपुत्र के साथ मिल कर विश्व के विशालतम डेल्टा का निर्माण करती है।

चंचल और भयप्रद नदी ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थल हिमालय के तिब्बत में है , आसाम का आलिंगन करते ही नदी अनेक द्वीपों को जन्म देती है, जैसे माजुली ,जो वृहत्तम नदी द्वीप है जिसका अपना वैभिन्य है और जो उपजाऊपन के रूप में उदार उपहार देती है।इस नदी में क्रूज़ की यात्रा को सहज में ही नहीं भुलाया जा सकता। ज्योर्तिमय गुवाहाटी शहर से प्रारम्भ करके काजीरंगा नेशनल पार्क के घने और दलदली विस्तार तक यात्रा करिए और इसके दौरान वैश्विक धरोहर के स्थलों को देखिए और इस यात्रा के दौरान खूबसूरत स्थलों पर मदिरा पान करिए। इसके अतिरिक्त चित्त को आकर्षित करने वाले वन्य जीव और अनेकानेक प्रकार के पक्षियों को नदी के आसपास हरे-भरे जंगलों में आश्रय लेते हुए देखिए। यह स्थान वन्य-जीव अवलोकन को रोमांचकारी बना देता है। नदी के किनारे प्राचीन भग्नावशेष , हिन्दू मन्दिर और औपनिवेशिक स्थल छिटपुट रूप में बिखरे पड़े हैं।

देश की दूसरी सबसे बड़ी नदी गोदावरी, जिसे भी देश की सात पवित्र नदियों में स्थान दिया जता है, का उद्गम स्थल त्रयम्बक है। इस स्थान को भगवान शिव के त्रयम्बकेश्वर मन्दिर के कारण पवित्र माना जाता है। गोदावरी का डेल्टा कोरिंगा के सदाबहार वन से आच्छादित है ,जो भारत का दूसरे नम्बर का सदाबहार वन है। गोदावरी और चैथी सबसे बड़ी नदी कृष्णा, का उपजाऊ डेल्टा दुर्लभ ऑलिव रंग के कछुओं का घोंसला बनाने का सुरम्य स्थान है। पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरि पहाड़ियों से निकल कर एक छोटी जल धारा के रूप में कावेरी भारत के दूसरे सबसे बड़े अद्भुत शिवसमुद्रम झरने में मिलती है और तमिलनाडु और कर्नाटक को पार करती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। पंपा नदी अपने लहराते रजत जल के कारण स्वर्ग के किसी कुण्ड से निकली हुई सी जान पड़ती है। इसके किनारे पर अनेकानेक धार्मिक स्थल हैं जबकि नदी स्वयं में केरल की परम्परा और संस्कृति के असली हस्ताक्षर सी लगती है। पश्चिमी घाट के पुलाचिमलाई से निकली सुन्दर और प्रचीन तथा अपने वैभवशाली हाउस बोट क्रूज़ के लिए ख्यात पंपा नदी वेंबानाद झील में गिरती है। अनेक औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों से होकर बहने के कारण इसके जल में अनेक औषधीय तत्व मिल जाते हैं, जिसके कारण इसकी ख्याति पाप निवारक नदी के रूप में है। श्रद्धा का केन्द सबरीमाला मन्दिर भी नदी के बालुकामय तट पर हरे-भरे वन प्रदेश और घास के मैदान के बीच है।

राजस्थान की अरावली की पहाड़ियों से निकलने वाली अलकनन्दा की सहायक नदी सरस्वती पाटन और सिद्धपुर से होती हुई कच्छ के रन में विलीन हो जाती है। 

पूर्वी मध्य प्रदेश के अमरकंटक पहाड़ियों के एक छोटे से नर्मदा कुण्ड से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है जो अन्ततोगत्वा अरब सागर में मिल जाती है। यह नदी लोगें द्वारा की जाने वाली अपनी परिक्रमा के लिए प्रसिद्ध है जिसको हम नर्मदा परिक्रमा के नाम से भी जानते हैं , जिसमें तीर्थयात्री नदी के एक तट से लेकर उसकी लम्बाई का सफर करते हुए दूसरे तट तक जाते हैं जिसमें लगभग दो से तीन साल तक लग जाते हैं।