तरंगायमान सुनहरे समुद्री तट से ले कर ,जो समुद्र में डूबते हुए सूर्य को देखने की सुविधा देते हैं , बालुई प्रसार तक , जो जैतून के रंग के कछुओं के प्रजनन स्थल हैं , भारत के पूर्वी और पश्चिमी घाट के समुद्री तटों को देख कर ऐसा लगता है मानों चित्रकार ने पेन्सिल ले कर इन्हे खींच दिया है। भारत के सबसे नीचे वाले भाग कन्याकुमारी में भारत के स्वच्छतम और शान्तिमय तट हैं ,जैसे संगुथुराई तट यहाँ से भारतीय सागर ,बंगाल की खाड़ी और अरब महासागर को एक दूसरे से मिलन का सुन्दर दृश्य देखा जा सकता है जो शहर के हृद्प्रदेश में है।

देश के समुद्री तटों ने हमारी सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखा है और अपने विस्तार में अनेक देवालयों , स्मारकों और यादगार इमारतों को पनाह दे रखा है। चेन्नई का इलियाट तट स्मारकों के लिए तथा कोची में फोर्ट कोची तट महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है। 

जब हम तटों की बात कर रहें हैं तो देश के समुद्र एवं रेत के हब गोवा को नहीं भूल सकते। अपने गौरव शाली रेतीले विस्तार के कारण यह पर्यटकों को शान्ति और सुकून का उपहार देता है।
अपनी मौलिक एवं सुन्दर बालू रूपी चादर से ढका हुआ कोल्वा तट पर झूमते हुए नारियल के वृक्ष से ले कर अर्द्धचन्द्राकार वैगाटर तट पर अनेकों पार्टियाँ होती रहती है ,जो प्रत्येक रात गोवा को चकाचैंध से भर देती हैं। गोवा के पास अपने पर्यटकों को देने के लिए बहुत कुछ है।

अधिकतर तटों पर जल क्रीड़ा की सुविधा है और यहाँ पर्यटक अपनी रोमांचक पिपासा को वाटर स्कीइंग ,स्कूबा डाइविंग , पैरासेलिंग ,विंडसर्फिंग द्वारा शान्त कर सकते हैं। इन सारी सुविधाओं से युक्त कुछ तट इस प्रकार हैं - कैलेंग्यूट तट ,सिंक्वेरियम तट ,बागा तट ,अंजुन तट आदि। तटों की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता हैं यहाँ उपलब्ध छोटी-छोटी झोपड़ियाँ , जो पर्यटक को यहाँ की आबोहवा में साँस लेने का और पुराने जोश के साथ मदिरा का आनन्द उठाने का मौका देती हैं।

भारत की समुद्री रेखा बहुत से प्रवासी पक्षियों एवं जलीय जन्तुओं को अपने सूर्याच्छादित तटों पर निवास का मौका देती है। इसमें सर्वाधिक प्रसिद्ध है महाराष्ट्र का वेलास तट जो जैतून के रंग के कछुओं के लिए जाना जाता है जो कुछ सालों से प्रजनन ऋतु में यहाँ अण्डा देने के लिए आते हैं। हर साल यह छोटा सा वेलास गाँव सद्यःजात कछुओं को समुद्र की ओर अपना पहला कदम बढ़ाते हुए देखता है। इस गाँव के लोग इन अण्डों की सलामती के लिए एक वार्षिक उत्सव का आयोजन करते हैं। ओड़िसा का गहीरमाथा तट भी जैतून के रंग के कछुओं के प्रजनन के लिए जाना जाता है। यह तट गहीरमाथा जलीय जीव अभयारण्य का ही हिस्सा है। पुरी का चन्द्रभागा तट जैतून के रंग के कछुओं के लिए विख्यात है। भुज का पिंगलेश्वर तट प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।

भारत के पश्चिमी तट पर पर्यटकों का ताँता लगा रहता है जबकि पूर्वी तट के बारे में लोग कम ही जानते हैं ,पर यहाँ के किसी भी मायने में कम सुन्दर नहीं हैं। ओड़िसा में पुरी का तट देश के सर्वाधिक प्रफुल्लित करने वाले तटों में से एक है। समुद्र में एक या दो डुबकी लगाने के लिए गोपालपुर तट का स्वच्छ और गहरा नीला जल अति उत्तम है। जब गोपालपुर की सुनहरी रेत पर फेनिल पानी पड़ता है तो उसे पूर्वी घट का सर्वाधिक सुन्दर तट बना देता है। सफेद फेनिल पानी और महीन रेत पर्यटकों को जल क्रीड़ा जैसे जेट स्कीइंग और बनाना बोट राइडिंग के लिए आमन्त्रित करती है। 

एक तट से दूसरे तट का भ्रमण करते हुए स्थानीय संस्कृति को देखने का अवसर पर्यटक को मिल जाता है जैसे ओड़िसा का ‘सर्फ उत्सव‘ जिसमें स्टैंड-अप-पैडल सर्फिगं को देखा जा सकता है। 

पुरी में चन्द्रभागा तट पर आयोजित ‘अन्तर्राष्ट्रीय बालुका उत्सव’ का आयोजन होता है , जहाँ भारतीय और विदेशी कलाकारों द्वारा अनुपम कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं।