शंकरम्

शारदा नदी के तट पर स्थित, शंकरम् गांव व्यापक रूप से बौद्ध विरासत स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। शंकरम् बोजना कोंडा और लिंगलकोंडा में बौद्ध स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, जो तीसरी और चौथी शताब्दी में बनाए गए थे। यह स्थान एक समय में बौद्ध संस्कृति और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। शंकरम् शब्द मूल रूप से 'संघाराम' शब्द से आया है, जिसका अर्थ मठ होता है। इस स्थल पर कई अखंड स्तूप, गुफाएं और संरचनाएं हैं। यहां पर की गई खुदाई में सातवाहन और समुद्र गुप्त के काल के पुराने सिक्के और भगवान बुद्ध की मिट्टी की प्रतिमा मिली है। यहां पाई गई गुफाएं भगवान बुद्ध की नक्काशीदार मूर्तियों से सजी हुई हैं। वर्ष 1906 में बोजाना कोंडा, अलेक्जेंडर री नाम के एक अंग्रेज द्वारा खोजा गया था। इसका नामकरण भगवान बुद्घ की पदासीन छवि पर किया गया था। शंकरम् विशाखापट्नम से लगभग 21 किमी की दूरी पर स्थित है, जो इसे दर्शनीय स्थल के रूप मे प्रसिद्ध बनाता है।

शंकरम्

बाविकोंडा

'बाविकोंडा' नाम का अर्थ है कुओं की एक पहाड़ी। इस पहाड़ी पर कई कुओं का उपयोग कर वर्षा जल को संग्रहित किया जाता था। यह विशाखापट्नम शहर से लगभग 15 किमी दूर स्थित, यह जगह अपने प्राचीन कलाकृतियों और विरासत स्थलों के लिए जानी जाती है। बाविकोंडा, बौद्धों में विशेष रूप से लोकप्रिय है और इनका एक मठ है, जिसे बाविकोंडा मठ कहा जाता है, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था। इस स्थल पर एक बड़े बौद्ध परिसर की खुदाई भी की गई, जहां बेहद रोचक अवशेष पाए गए। इनमें एक कलश था, जिसमें कुछ हड्डियां थीं, जिसे भगवान बुद्ध का अस्थिशेष माना जाता है। यहां मिलने वाली चीजों में शिलालेख, मिट्टी के बर्तन, ताबूत के अवशेष, ढली हुई ईंटें, प्लास्टर, टाइल्स, आदि शामिल हैं। बाविकोंडा आंध्र प्रदेश राज्य में एक लोकप्रिय स्थान है, जो विशाखापट्नम से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है।

 बाविकोंडा

पनडुब्बी संग्रहालय

विशाखापट्नम में आर.के. बीच पर भारत की सबसे प्रसिद्ध पनडुब्बियों में से एक एनएस कुरसुरा पनडुब्बी को रखा गया है। एनएस कुरसुरा पनडुब्बी को बाद में पनडुब्बी संग्रहालय के रूप में बदल दिया गया। यह एशिया की पहली और विश्व की दूसरी पनडुब्बी है, जिसे संग्रहालय में परिवर्तित किया गया है। संग्रहालय में पनडुब्बी के विभिन्न घटक जैसे-सोनार रूम, रडार रूम, कंट्रोल रूम और युद्ध़ में उपयोग होने वाले विविध शस्त्र प्रदर्शित किए जाते हैं। इस तरह कई कलाकृतियों, तस्वीरों, पटकथाओं आदि से आप समुद्रतटीय उद्गम को जान सकते हैं। पर्यटक इस प्रदर्शनी के माध्यम से पनडुब्बी के जीवन और उनके भीतर की समस्याओं को जान सकते हैं।

कुरसुरा भारतीयों के दिल में बहुत महत्व रखती है, क्योंकि वह भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा की आधारशिला थी। इसने 1971 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस पनडुब्बी ने यात्राओं और फ्लेगशिप शॉइंग मिशन के माध्यम से अन्य देशों में सद्भाव और सद्गुण फैलाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। कुरसुरा ने 31 वर्षों तक देश की सेवा कर और लगभग सभी प्रकार के नौसैनिक अभियानों में भाग लेते हुए 73,500 समुद्री मील की दूरी तय की है। फरवरी 2001 में इसका विघटन कर दिया गया। संग्रहालय का उद्घाटन 9 अगस्त, 2002 को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा किया गया था, इसको 24 अगस्त, 2002 को जनता के लिए खोल दिया गया।

पनडुब्बी संग्रहालय

बोर्रा गुफाएं

देश की सबसे बड़ी गुफाओं में से एक, बोर्रा गुफाएं, लाखों वर्ष पुरानी स्टैलेक्टाइट (stalactite) और स्टैलेग्माइट (stalagmite) संरचनाओं का घर हैं। समुद्र तल से 1,400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, ये अद्भुत गुफाएं पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण है। इस क्षेत्र में चूना पत्थर के जमाव पर गोस्थानी नदी के प्रवाह के परिणामस्वरूप ये गुफाएं अस्तित्व में आईं हैं। यहां देखे जा सकने वाले कुछ सबसे अधिक प्रचलित स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट फॉर्मेशन में भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती, उनके बच्चे, एक मगरमच्छ, एक मानव मस्तिष्क और एक बाघ शामिल हैं। इन गुफाओं की खोज भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के विलियम किंग जॉर्ज ने की थी। कहा जाता है कि बोर्रा गुफाओं की पहली बार खोज उस समय हुई, जब एक चरवाहा अपनी खोई गाय को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते अचानक ही इन गुफाओं में पहुंच गया। गुफा के काफी भीतर उसे एक शिवलिंग और अपनी गाय मिली। उसने यह सोचा कि भगवान शंकर ने उसकी गाय की रक्षा की है। इसके बाद गांव वालों ने इन गुफाओं के बाहर एक छोटा मंदिर बना दिया। इस कारण यह किसी दर्शनीय स्थल से कम नहीं है, बोर्रा गुफाओं को देखने के लिए पर्यटक पूरे देश से आते हैं।

बोर्रा गुफाएं