लाल पत्थरों से बना यह मंदिर दुर्गा मां को समर्पित है जो दुर्गा कुंड मंदिर भी कहलाता है। शहर के दक्षिण में स्थित इस मंदिर का निर्माण किसी गुमनाम बंगाली रानी ने 18वीं सदी में करवाया था। यह मंदिर बहु-स्तरीय शिखरों के साथ उत्तर भारतीय वास्तुशिल्प में बनाया गया है। यहां पर अत्यधिक बंदर होने के कारण यह बंदरों का मंदिर भी कहलाता है। इस मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। इसके चारों ओर पंक्तिबद्ध सीढ़ियां तथा हर एक कोने पर खंभे बने हुए हैं। हिंदू श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, विशेषकर नवरात्रि में तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है जब मां दुर्गा को पूजा जाता है। श्रद्धालुओं  में यह मान्यता है कि इस मंदिर में दुर्गा मां की प्रतिमा स्वयं ही प्रकट हुई थी। मंदिर के भवन पर किया गया लाल रंग मां दुर्गा को ही समर्पित है, यह रंग देवी का ही प्रतीक है। कइयों का मानना है कि देवी मां श्रद्धालुओं को परेशानियों से उबारती हैं। 


वाराणसी में एक अन्य दुर्गा मंदिर है, जिसका नाम ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर है। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे दुर्गा घाट (अर्थात् दुर्गा कुंड) के निकट स्थित है।

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