गुलाबी मीनाकारी भारत के दुर्लभ शिल्पों में से एक है, जो गाय घाट के निकट वाराणसी की गलियों में की जाती है। मीनाकारी फ़ारस की एक कला है, जिसमें धातुओं की सतह की विभिन्न रंगों से रंगाई की जाती है। यह कला 17वीं सदी के आरंभ में मुग़लकाल के दौरान वाराणसी में फ़ारसी तामचीनी बनाने वालों द्वारा लाई गई थी। 

शब्द ‘मीना’ फ़ारसी शब्द ‘मीनू’ का स्त्रीलिंग है जिसका मतलब जन्नत होता है। यह स्वर्ग के नीले रंग को दर्शाता है। वाराणसी में, इसका उपयोग आभूषणों एवं घरेलू सजावटी सामान पर किया जाता है। कोई भी यहां से स्मृति चि(नों के रूप में पक्षी एवं हाथी ख़रीद सकता है, जो मीनाकारी से सुसज्जित होते हैं। 

यह कारीगरी सोने पर बहुत सुंदरता से दिखाई देती है क्योंकि इसकी प्राकृतिक चमक रंगों को बखू़बी निख़ारती है। यह तामचीनी पर भी बेहद सुंदर दिखता है। इसलिए, कोई भी यहां से आभूषण रखने के डिब्बे, मूर्तियां, प्रतिमाएं, चाभी के छल्ले, बर्तन, थालियां, अल्मारियां इत्यादि ख़रीद सकता है, जिन पर मीनाकारी की गई होती है।

मीनाकारी के काम में बहुत ही सरल औज़ार उपयोग में लाए जाते हैं जैसे सलाई, भट्ठी, धातु की पट्टी, ओखल एवं मूसल, कलम, पीतल की डाई, घिसाई के लिए छोटे ब्रश, चिमटी और टकला (रंग भरने के लिए सूई युक्त औज़ार) आदि।

मीनाकारी तीन लोकप्रिय रूपों में मिलती है - एक रंग खुला मीना, जिसमें केवल सोने की बाहरी रेखाएं ही दिखती हैं और एक पारदर्शी रंग का उपयोग किया जाता है। पांच रंगी मीना, जिसमें लाल, सफेद, हरा, हल्का नीला एवं गूढ़ा नीला रंग इस्तेमाल में लाया जाता है। गुलाबी मीनाकारी में गुलाबी रंग की प्रमुखता रहती है। गुलाबी मीनाकारी के लिए वाराणसी बेहद लोकप्रिय है।