यह मंदिर सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है (वह भक्ति मंदिर जहां देवी सती के शरीर के कटे हुए हिस्से गिरे थे)। क्षिप्रा नदी के पास स्थित इस मंदिर में मुख्य देवता माता हरसिद्धि की मूर्ति है। यहां पर पर्यटक देवी अन्नपूर्णा, देवी महालक्ष्मी और देवी महासरस्वती की मूर्तियों की पूजा कर सकते हैं। मंदिर में विराजमान शक्ति या शक्ति का प्रतीक श्रीयंत्र प्रमुख आकर्षण है। मंदिर की वास्तुकला में कुछ-कुछ मराठा प्रभाव दिखाई पड़ता है। चारों दिशाओं में एक-एक, इसके कुल चार प्रवेश द्वार हैं। इसका मुख्य द्वार पूरब की तरफ है। मंदिर परिसर में पिन की आकृति में दो विशाल स्तंभ हैं। इन दो स्तंभों पर 726 लाइट होल्डर लगे हैं, जिनको विशेष रूप से नवरात्रि (नौ दिवसीय पवित्र त्यौहार) के दौरान जलाया जाता है। उस समय का दृश्य बहुत आश्चर्यजनक लगता है। इन दो प्रमुख स्तंभों के अलावा, परिसर के भीतर एक प्राचीन कुआं भी है, जिसके शीर्ष पर कलात्मक नक्काशीदार स्तंभ है। स्कंदपुराण की रोमांचक किंवदंती के अनुसार देवी चंडी को हरसिद्धि की उपाधि मिली थी और यह मंदिर उन्हीं को समर्पित था। कथा के अनुसार: एक बार, जब भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर अकेले थे, तो चंड और प्रचंड नाम के राक्षसों ने उनकी गोपनीयता भंग करने और दोनों को मारने की कोशिश की। भगवान शिव ने तब देवी चंडी का आह्वान किया। देवी चंडी ने उन दोनों राक्षसों का वध किया।

लोकप्रिय कहावत के अनुसार, राजा विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के बहुत बड़े भक्त थे और प्रार्थना करने नियमित रूप से यहां आते थे।

अन्य आकर्षण