शहर से बहुत थोड़ी दूर स्थित, गडकालिका मंदिर देवी कालिका को समर्पित है। किंवदंती है कि कवि कालिदास, हालांकि जो औपचारिक रूप से अशिक्षित थे, लेकिन इसी देवी के आशीर्वाद से अद्वितीय साहित्यिक ज्ञान और कौशल प्राप्त कर सके। कालीदास कालिका देवी के समर्पित भक्त थे। देवी कालिका सार्वभौमिक ऊर्जा की प्रतीक हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर, भक्तों को पत्थर से बने शेर की एक मूर्ति के दर्शन होते हैं, जिसका मुंह उस देवता की ओर है, जिसके सिर पर केसरिया रंग की नक्काशी वाला चांदी का मुकुट है। इस मंदिर में पिरामिड के आकार का एक खोखला गुंबद है, जिसमें परतदार नक्काशी की गई है। मंदिर के चारों ओर मोटे साधारण बार्डर हैं, जिन पर भूरे रंग से नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर के भीतर जाकर भक्त भगवान गणेश की मूर्ति पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं। हालांकि मंदिर का निर्माण कब हुआ? यह अब तक अज्ञात है। इसकी मरम्मत एक बार 7वीं शताब्दी ईस्वी में वर्धन वंश (606-647 शताब्दी) के शासक सम्राट हर्षवर्धन द्वारा और परमार काल (9 वीं से 14 वीं शताब्दी) में कराई गई थी। मंदिर की वर्तमान संरचना और इसका मौजूदा आकार, ग्वालियर के तत्कालीन राज्य द्वारा दिया गया।

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