जहाँगीर महल

यह महल बनाम किला 17 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट जहांगीर के सम्मान में राजा बीर सिंह देव द्वारा बनाया गया था। यह विशाल इमारत लाल और पीले बलुआ पत्थर से निर्मित एक तीन मंजिला इमारत है। इसमें एक केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर 236 कक्ष हैं, जिनमें से 136 भूमिगत हैं। वहां ऊपर-नीचे एक बेतरतीब तरीके से चढ़ते-उतरते हैं, और यह देखने में किसी बेहतरीन दृश्य से कम नहीं है। चार कोनों में खड़े विशालकाय बुर्ज और विशाल लकड़ी का द्वार इस   किले की आभा में चार चांद लगाते हैं।


महल मुगलों और बुंदेलों के बीच घनिष्ठ मित्रता का प्रतीक था और इस तरह वास्तुकला की हिंदू और इस्लामी दोनों शैलियों के निशान यहां देखने को मिलते हैं। गुंबद, प्रवेश द्वार, कमरे, छत और गलियारे इसके कुछ उदाहरण हैं। हाथियों के चित्र स्मारक की हिंदू विरासत की ओर इंगित करती हैं। यह महल बेतवा नदी के तट पर बनाया गया है और यह वनों से घिरा हुआ है। इसके परिसर के भीतर ऊंट का अस्तबल भी है। यद्यपि यह मूल रूप से सम्राट जहांगीर को समर्पित था, पर कहा जाता है कि वह केवल एक रात के लिए यहां रुके थे। महल का रखरखाव अब मध्य प्रदेश का पुरातत्व विभाग करता है।

जहाँगीर महल

राज महल

राजपूत और मुगल वास्तुकला के संयोजन को दर्शाते हुए, राज महल एक राजसी महल है जो पत्थर की जाली के आश्चर्यजनक काम के लिए जाना जाता है। इसमें दो दर्शक हॉल, दरबार-ए-ख़ास और दरबार-ए-आम है, जो अपने पुराने वैभव के साथ गुंजायमान होते हैं। हर साल, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से हजारों आगंतुक राज महल को देखने पहुंचते हैं। सबसे ऊपर की मंजिल पर, कोई भी दीवारों पर हुए उत्कृष्ट शीशे के काम के अवशेषों को देख अचंभित हो सकता है। जब सूरज की रोशनी इन शीशों पर पड़ती है, तो वे पूरे कक्ष को रोशन करते हुए एक सचमुच का वास्तविक प्रभाव पैदा करते हैं। यह जगह ऐसी है कि इसे बस निहारते ही रहने का मन करता है। पहले यहां शाही राजवंश के लोग रहते थे और उसकी ऊंचे-ऊंचे छज्जे एक तरह से इसकी पहचान थे। वास्तुशिल्पीय कुशलता विभिन्न मंजिलों में विशेष रूप से दिखाई पड़ती है। ये मंजिलें जो कि उभरे हुए रास्तों से आपस में जुड़ी हुई हैं, चारों तरफ से आनुपातिक हैं। महल की पूरी संरचना में मीनारें और गुंबददार मंडप हैं।राजा रुद्र प्रताप सिंह ने 16 वीं शताब्दी में राज (राजा) महल का निर्माण शुरू किया था। लेकिन यह बनकर तैयार 17 वीं शताब्दी में बुंदेलखंड राजवंश के बीर सिंह देव के पिता मधुकर शाह के शासनकाल के दौरान हुआ। एक और आकर्षण पास में स्थित शीश महल है।

राज महल

राम राजा मंदिर

एक महल के समान, यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। हल्के-धूमिल लाल रंग की गुंबदों वाली इमारत, कभी रानी गणेश कुमारी का महल थी, जो ओरछा के राजा मधुकर शाह की पत्नी थीं। इसे तब रानी महल के नाम से जाना जाता था। रानी भगवान राम की भक्त थीं और चाहती थीं कि उनकी मूर्ति उनके महल में स्थापित हो। देवता को एक लड़के के रूप में वापस लाने की इच्छा के साथ, रानी अयोध्या तीर्थयात्रा पर गईं, जिसे भगवान का जन्मस्थान कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए और एक शर्त पर उनके साथ ओरछा आने के लिए सहमत हो गए। मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने कहा कि वह एक मंदिर से दूसरे मंदिर नहीं जाएंगे और हमेशा उस स्थान पर रहेंगे जहां उनकी मूर्ति स्थापित की जाएगी। इस प्रकार, बाद में महल को भगवान के मंदिर में बदल दिया गया।

राम राजा मंदिर

राय परवीन महल

This palace is dedicated to the beautiful poetess-musician Rai Parveen, who is said to have been the paramour of king Indrajit. The besotted king built this three-storeyed palace for her in 1618. Also called the Nightingale of Orchha by many, it is said that the reputation of her beauty and talent reached the Mughal court as well. Emperor Akbar sent orders for Rai Parveen to be sent to Delhi. Since the Orchha kingdom was under the supremacy of the Mughals, the command could not be disobeyed and Rai Parveen departed for Akbar's court in 1602.

The poetess, however, did not shy away from expressing her feelings and wrote a couplet that read "Viniti Rai Praveen ki, suniye Shah Sujan, juthi patar bhakat hain, bari, bayas, swan." This was indicative of the message that Rai Parveen was the beloved of another person and it would be against the dignity of the emperor to use her. Akbar was impressed with her intelligence and allowed her to return to Orchha laden with gifts and prizes. Today, a sound and light show is organised in the fort that relates the story of Rai Parveen.

राय परवीन महल