पुगर कढ़ाई का एक बहुत विशिष्ट रूप है, जिसका शाब्दिक अर्थ है फूल। इसमें अलग-अलग ज्यामितीय आकार की कढ़ाई लंबे शॉल पर की जाती है, जिन्हें पुतकुली कहा जाता है। डिजाइन ज्यादातर प्रतीकात्मक हैं, जिसमें पुष्प आकृति से लेकर पशु और मानव चित्र शामिल हैं। पुगार कढ़ाई टोडा जनजाति की विशेषता है और इसे टोडा कढ़ाई भी कहा जाता है। पुगार का काम शॉल, मैट, बैग आदि पर किया जाता है। लाल और काले रंग की कढ़ाई विशेष रूप से टोडा महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। पुगार दिखने में एक महीन कपड़े की तरह दिखता है, असल में सफेद सूती कपड़े पर लाल और काले धागों को मिलाकर इसे बनाया जाता है। जनजाति के सदस्य खुद को पुगार कढ़ाई किए गए शॉल और लहंगे से सजाते हैं। इस शिल्प को भौगोलिक पहचान दी गई है और इसे भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत अधिनियम के तहत संरक्षित किया गया है।

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