नांदेड़ वासियों के जीवन में नृत्य और नाटक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यहां के स्थानीय लोगों द्वारा किए जाने वाले अधिकतर नृत्य यहां के महान राजाओं की स्तुति, ऐतिहासिक दंतकथाओं, पौराणिक आख्यानों आदि को आधार बना कर रचे गए लोकगीतों पर आधारित होते हैं। इन नृत्यों में पोवाड़ा, लावणी, गोंढल, भरुड़ आदि प्रमुख हैं। पोवाड़ा असल में महान शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की कथाओं पर आधारित गाथा-नृत्य होता है। भरुड़ मेलों, उत्सवों आदि में किया जाने वाला नृत्य है जिसमें लोक संस्कृति, आध्यात्मिकता, हास-परिहास आदि का सम्मिश्रण रहता है। और जब नृत्य में कुशलता की बात होती है तो लावणी नृत्य को उसके संगीत, ताल और असाधारण लय के खूबसूरत मिश्रण के लिए जाना जाता है। रंगमंच में ज्यादातर ‘तमाशा’ और ‘डिंडी’ को लोकप्रियता मिलती है।  तमाशा की शुरूआत 16वीं सदी में हुई थी और यह कहानी, कविता व लावणी नृत्य का दिलचस्प मिश्रण है। ये लोक नाट्य अधिकतर कोठारी और महार समुदायों द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। ‘डिंडी’ भगवान कृष्ण की लीलाओं के इर्द-गिर्द रचा गया एक धार्मिक नृत्य है जो कि अधिकतर एकादशी पर्व पर किया जाता है।

अन्य आकर्षण