लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, इस मठ की स्थापना 11 वीं शताब्दी में एक प्रसिद्ध प्राचीन अनुवादक लोचन रिंचेन ज़ंगपो ने की थी। यह मठ मनाली से लगभग 6 घंटे की दूरी पर नाको गांव में है। मठ को लोटसवा झकंग के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है अनुवादक का परिसर। नाको झील के किनारे स्थित इस शांत मठ का निर्माण, स्पीति घाटी में प्रसिद्ध ताबो मठ के पैटर्न पर किया गया है, और यह चार हॉल या चैपल्स में विभाजित है। इस मठ का द्वार, जटिल नक्काशियों से उत्कीर्ण है।वज्रयान बौद्ध धर्म से प्रेरित यह मठ, दूर-दूर के लोगों को आमंत्रित करता है। इसकी दीवारें सुंदर चित्रकारियों से सजी हैं। नाको मठ में मिट्टी और धातु से बनी कई मूर्तियों के साथ-साथ स्तूपों और अनुवादित धर्मग्रंथों (कांग्युर) का संग्रह भी है, जिसमें भगवान बुद्ध की प्रत्यक्ष शिक्षाएं अंकित हैं।शाहसुर मठ (आध्यात्मिक)शाहसूर, जिसका अर्थ है नीला देवदार, हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले का एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ है। यह 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किंवदंती यह है कि इस मठ का निर्माण 17 वीं शताब्दी के दौरान लामा देव ग्यात्सो ने कराया था जो भूटान के तत्कालीन राजा नवांग नामग्याल के मिशनरी थे। कहा जाता है कि लामा अपने अंतिम दिनों तक यहीं रहे। इस तीन मंजिला गोम्पा (मठ) की दीवारों को 5 मीटर लंबी थंगका (एक धार्मिक पेंटिंग या स्क्रॉल) और नामग्याल की मूर्ति के साथ-साथ चमकीले चित्रकारियों से सजाया गया है जो बौद्ध धर्म के 84 सिद्धों को चित्रित करते हैं। हालां कि मठ में सालो भर से दूर-दूर से पर्यटक आते हैं, पर जून और जुलाई के महीने जब यह मठ अपना वार्षिक उत्सव मनाता है उस वक्त सबसे अधिक पर्यटक यहां आते हैं। इस त्योहार का मुख्य आकर्षण, पारंपरिक चाम (चाम) या मुखौटा नृत्य है, जो यहां के भिक्षुओं द्वारा किया जाता है।

अन्य आकर्षण