अभेद्य कुम्भलगढ़ किला, एक ऊंचे पर्वत पर स्थित है, जो अतीत की एक छाप की तरह प्रतीत होता है। आसपास के ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों से उभरते हुए, 3,600 फीट की ऊंचाई पर, स्थित किले को उस तक चल कर पहुंचने से पहले ही दूर से देखा जा सकता है। लगभग 38 किमी लंबी, दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार के साथ, कुंभलगढ़ किले को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा, यह मेवाड़ किले के रूप में भी जाना जाता है और यह महान राजपूत राजा, महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी है। किले को इस तरह से बनाया गया था कि वहां से दुश्मन को मारा जा सके। अरावली पहाड़ियों की ऊंचाइयों पर खड़ा होने के कारण और आरेत, हनुमान, हुल्ला और राम पोल और बादल महल के चार मुख्य द्वारों पर बनी इसकी मजबूत प्राचीरें, जो कि दुश्मन के लिए एक बड़ी बाधा थीं, की वजह से किले तक पहुंचना लगभग असंभव था। यही नहीं,  आसपास की 13 पर्वत चोटियों और अनगिनत पहरा देने वाले बुर्जों ने इसे दुश्मन के लिए एक चुनौती बना दिया था। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि केवल एक बार ही किले को घेर लिया गया था।

 किले को देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है। इसके ऊंचे बिंदुओं से, जहां से इसे आराम से देखा जा सकता है, थार रेगिस्तान के व्यापक दृश्यों का आनंद उठाया जा सकता है। साथ ही, इसके खूबसूरत अंदरूनी भागों और बादल महल और कुंभ महल जैसे विभिन्न खंडों को भी देखा जा सकता है। उस ऊंचाई से दिखने वाला हर दृश्य अभिभूत करने वाला है। किले के अंदर लगभग 360 हिंदू और जैन मंदिर हैं और भक्त वहां आकर अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। पर्यटक चमकते तारों के नीचे किले में आयोजित होने वाले लाइट एंड साउंड शो को भी देख सकते हैं।

 किले का निर्माण पंद्रहवीं शताब्दी में राणा कुंभा द्वारा करवाया गया था। फिर उन्नीसवीं शताब्दी में महाराणा फतेह सिंह ने इसका नवीनीकरण करवाया। राज्य सरकार का पर्यटन विभाग इस शानदार वास्तुकला के लिए राणा कुंभा को श्रद्धांजलि देने के लिए तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन करता है।

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