स्मोकिंग पाइप्स

जोरहाट, अपने यहां मिलने वाले खास तरीके के कलात्मक स्मोकिंग पाइप्स के लिए भी जाना जाता है, जो यहां के आदिवासी समुदाय पालिबु द्वारा बनाए जाते हैं। ये लोग धूम्रपान के शौकीन होते हैं और बांस की जड़ और लकड़ी से अपने स्मोकिंग पाइप्स खुद तैयार करते हैं। वैसे कभी-कभी यह लोग अपनी करीबी जनजातीयों से व्यापार करते समय धातु से बने पाइप्स का भी अदान-प्रदान कर लेते हैं। बोकरा, मम्बा और रामो नामक आदिवासी समुदाय धातु से बने पाइप्स का इस्तेमाल करते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप धूम्रपान करते हैं या नहीं, जोरहाट से यह स्मोकिंग पाइप्स आप समृति चिन्ह के रूप में भी ला सकते हैं। 

स्मोकिंग पाइप्स

अस्त्र-शस्त्र

जोरहाट अपने तेज धार वाले हथियारों के लिए काफी प्रसिद्ध है। क्योंकि यह हथियार सदियों से यहां की जनजातीय जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। हालांकि समय के साथ-साथ पारंपरिक शस्त्रों का स्थान आधुनिक शस्त्रों ने ले लिया है, लेकिन फिर भी यह प्रचानी हथियार यहां की संस्कृति में एक अहम स्थान रखते हैं। इन हथियारों का इस्तेमाल शस्त्रों के रूप में तो किया ही जाता था, लेकिन रोजाना के कार्यों में भी इनका खूब इस्तेमाल होता था। यह सभी शस्त्र स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए जाते हैं, जिनमें तीर-कमान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हें यहां मु और टकरी के नाम से जाना जाता है। ग्राहक की जरूरत के हिसाब से इन्हें छोटा या बड़ा बनाया जाता है। शिकार के दौरान इस्तेमाल में लाये जाने वाले यह इन तीरों की नोंक को लोहे से मढ़ा जाता है, जिस पर जानवरों को मारने के लिए विषैला पदार्थ लगाया जाता है। 

अस्त्र-शस्त्र

मिट्टी के पात्र

असम के इस क्षेत्र में बनने वाले मिट्टी के बर्तन, अपने विशिष्ट प्रकार के आकृति और बनावट के लिए जाने जाते हैं। जोरहाट में रहने वाले स्थानीय कारीगर बेहद खास और दिलचस्प शैली से मिट्टी के इन बर्तनों को इनका खास आकार देते हैं। यह लोग पारंपरिक चाक की जगह मिट्टी को हथौड़े से पीट पीटकर मुलायम बनाते हैं, जो नदी किनारे से लायी जाती है और थोड़ी चिपचिपी सी होती है। 

जोरहाट इसी विशेष प्रकार की मिट्टी से बने बर्तनों के लिए भी खासा जाना जाता है। यहां पश्चिम में स्थित बाहरी इलाके में कठहलबाड़ी कुम्हार नामक एक गांव है, जहां मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों के परिवार बड़ी संख्या में रहते हैं और पीढ़ीयों से यही काम करते आ रहे हैं। यहां की स्थानीय जनजाति डलफा (न्यिशी, निसि या निशि) के सदस्य मिट्टी के बर्तन बनाने में बहुत दक्ष माने जाते हैं। खासतौर पर इस समुदाय की महिलाएं इस कार्य में बेहद निपुण होती हैं। एक प्रचीन कथा के अनुसार अबो टकम नामक एक कुम्हार था जो पहला डलफा कुम्हार था और उसी ने मिट्टी का यह हुनर इन लोगों को विरासत में दिया। जोरहाट के कुम्हार खाना पकाने के बर्तनों से लेकर लैम्प और पाइप तक सब कुछ बनाते हैं। और हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने में तो उन्हें महारत हासिल है। 

मिट्टी के पात्र

काष्ठ कला

जोरहाट में पेड़ों की भरमार है। इसलिए यहां की काष्ठ कला भी बड़ी समृद्ध दिखती है। यहां चंदन, सलमनी, अगरू और वट जैसी मूल्यवान लकड़ियों की प्रचुरता पायी जाती है। स्टूल, कुर्सी, मेज, पालकी, छड़ी और खड़ाऊं से लेकर अनगिनत घरेलू वस्तुओं तक के निर्माण में लड़की का इस्तेमाल किया जाता है। इन सभी वस्तुओं पर जानवरों, पक्षियों और मछलियों की आकृतियां उकेरी जाती हैं। इतना ही नहीं यहां घरों के दरवाजों और दीवारों पर भी लकड़ी का खूबसूरत काम देखा जा सकता है। 

काष्ठ कला

बांस और बेंत से बनी वस्तुएं

असम के रोजमर्रा के जीवन में बांस और बेंत का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि यह दोनों लकड़ियां इस राज्य में बहुतायात में पायी जाती हैं। ये भी कहा जाता है कि बांस से बना फर्नीचर सिर्फ एक असमिया बढ़ई ही खूबसूरती से बना सकता है। जोरहाट स्थित तमाम छोटे-बड़े उद्योग बेंत और बांस से बनने वाले सामानों जैसे वाद्य-यंत्रों, घरेलू सामान, लैम्प इत्यादि, मदिरा पान से जुड़ी वस्तुएं, टोकरियां, बैग्स और सजावट के सामान जो कि पर्यावरण के अनुकूल माने जाते हैं, को बढ़ावा देते हैं। 

असम में घरों के निर्माण तथा उनके चारों ओर बाड़ बनाने में बांस का इस्तेमाल विशेष रूप से किया जाता है। यहां के कारीगर बिना किसी मशीनी उपकरण का इस्तेमाल किये सिर्फ अपने हाथों से बांस और बेंत के बेहद खूबसूरत और मजबूत उत्पाद तैयार करते हैं। इन दोनों लकड़ियों का इस्तेमाल बुनकरों के औजार बनाने में भी बखूबी किया जाता है। इन कारीगरों का हुनर देखने के लिए पर्यटकों को जोरहाट और इसके आस-पास के इलाकों में स्थित हस्तशिल्प की दुकानों पर जरूर जाना चाहिये। 

बांस और बेंत से बनी वस्तुएं

वस्त्र

जोरहाट अपने विशिष्ट और दुलर्भ प्रकार के मुगा सिल्क के लिए दुनियाभर में जाना जाता है, जो तैयार किया जाता है सिर्फ असम में पाये जाने वाले एंथीरिया नामक रेशमी कीड़े से। मुगा सिल्क से बनी साड़ियां अपनी शानदार चमक और टिकाऊपन के लिए जानी जाती हैं और ये भी कहा जाता है कि आप जितना इस साड़ियों को धोते हैं, उतना इनकी सुनहरी चमक बढ़ती जाती है। इसी सिल्क से मेखला चादोर भी बनाई जाती है, जो असमिया महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला एक पारंपरिक परिधान है। जोरहाट की दुकानों में आपको मुंगा सिल्क की साड़ियों का खूबसूरत संग्रह आसानी से देखने को मिलता है। इसके अलावा यहां बांस और बेंत से बनी कोननुमा टोपियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं, जिन्हें जपी कहा जाता है। जपी को और आकर्षक बनाने के लिए इसमें रंग-बिरंगे कपड़ों को सिला जाता है और वाल हैंगिंग की तरह सजाया जाता है। 

वस्त्र

आभूषण

जोरहाट, असम का एक ऐसा शहर है, जो असमी आभूषणों का गढ़ माना जाता है और बड़ी संख्या में पर्यटक तथा स्थानीय लोग यहां इन गहनों की खरीददारी के लिए आते हैं। पारंपरिक असमी आभूषणों में बेहद साधारण और ज्यामितिय आकृतियों को चांदी, सोने, तांबे और पीतल पर उकेरा जाता है। इन आभूषणों को ज्यादा भव्य और आकर्षक बनाने के लिए इनमें मोती, हीरो और रूबी भी जड़े जाते हैं। यहां मिलने वाले अधिकतर गहने शुद्ध सोने से बनाए जाते हैं, जिनमें लाख भरा जाता है। फिर एक सोने की पŸा पर जेम्सस्टोन्स जड़े जाते हैं। यहां सोने की शुद्धता जांचने के लिए एक विशेष प्रकार के पत्थर का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कसौटी कील कहते हैं। हाथ से बने असमी आभूषणों की सबसे खास बात यह होती है कि उनमें चमक नहीं होती। इसलिए देखने में वह बेहद नफीस और प्राचीन लगते हैं। हालांकि चमकदार कीमती पत्थर भी असम की रंग-बिरंगी संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं। इसलिए कुछ आभूषणों में खास किस्म के डिजाइनों को उकेरा जाता है। 

मसलन, लोका पारो में रूबी और सोने से खूबसूरत दो कबूतर उकेरे जाते हैं। इस आभूषण को अहोम राजवंश के रजवाड़े पहना करते थे। जोन-बिरी नामक एक अन्य आभूषण, गले में पहना जाता है। पेंडेन्टनुमा यह आभूषण अर्धचन्द्राकार डिजाइन में होता है, जिसके साथ रूबी और गोल्ड से बने खूबसूरत कानों के झुमके भी आते हैं। इन झुमकों के पीछे की ओर बड़ी खूबसूरत मीनाकारी की जाती है। इसी प्रकार एक अन्य बेहद प्रसिद्ध डिजाइन है ढोलबिरी, जो देखने में असमिया ड्रम की तरह लगता है। थुरिया, सोने से बने कानों के आभूषणों को कहते हैं, जिनमें खूबसूरत जेम्सस्टोन जड़े होते हैं। यह आभूषण असम की बुर्जुग महिलाएं पहनती हैं। गम खरू, यहां का एक अन्य प्रसिद्ध आभूषण है, जिसे स्थानीय लोग बहुत ज्यादा पहनते हैं। गाम खारू, दरअसल गोल्ड से बने ब्रेसलेट को कहते हैं, जो किनारों से खुला होता है और उत्सवों के दौरान इसे विशेष रूप से पहना जाता है। 

आभूषण