यह हवेली इस्लामी और राजपूताना स्थापत्य कलाओं के सम्मिश्रण का बेहतरीन नमूना है। इसका निर्माण19वीं सदी में दो वास्तुविद भाइयों के द्वारा कराया गयाए जिन्होंने इसका निर्माण विपरीत छोरों से आरंभ किया। इस महल के दाहिने और बाएँ अग्रभाग एक दूसरे के समान हैंए लेकिन एकरूप नहीं हैं। यह निर्देशित असमानता इस हवेली के वास्तुकृत सौंदर्य में चार चाँद लगाती है। मिनिएचर पद्धति चित्रकलाएँ और पीले पत्थरों पर उकेरी गई महाबली गजदंतों की आकृतियों से इस महल के अंदरूनी हिस्से को सजाया गया है।

इसके द्वार पर सजी आदम कद मूर्तियाँ इस ऐतिहासिक धरोहर के द्वारपाल जैसे लगते हैं। यह आसानी से समझा जा सकता है कि प्राचीन जैसलमेर में यह हवेली सभी स्थानीय गतिविधियों का केंद्र रही होगीए जब कि आज यह कई आधुनिक मकानों और संकरी गलियों के पीछे छुप गई हैए यह सारी गलियाँ इस हवेली तक जाती हैं। हालाँकि हवेली काफी हद तक बसी हुई हैए आप इसकी पहली मंज़िल तक की सैर करने का मौका पा सकते हैं जिसमें चित्रों को सोने के वरक़ का इस्तेमाल करते हुए खूबसूरती से सजाया गया है। नथमल की हवेली को दीवान मोहाता नथमलए जो जैसलमेर के प्रधानमंत्री थेए के निवास के लिए बनाया गया था। इसका निर्माण महारावल बेरी साल की देख रेख में हुआ था। 

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