यहपरंपरागत नृत्य शैली राजस्थानी सपेरों के कालबेलिया समाज द्वारा अपनाई जाती है। इसमें चक्करदार सुंदर चेष्टाएँ की जाती हैं जो इस नृत्य को दर्शनीय बनाती हैं। यहनृत्य की आनंद पूर्ण शैली है जिसमें जोरदार चेष्टाएँ होती हैंए इस में औरतों का लहराता हुआ घाघरा और चमचमाते हुए गहने हरचक्कर के साथ लचकते हैं और वह एक नागिन की तरह लहराती हैए वह परंपरागत संगीत वाद्यों की लय पर नाचती है जिसे मर्दलोग बजाते हैं। यह नृत्य इस समाज की अपने सदियों पुरानी संस्कृति को श्रद्धांजलिहै। जैसे जैसे प्रदर्शन अपने चरम पर पहुंचता हैए साजकी लय बढ़ती जाती है और उसी अनुपात में नृत्य की चेष्टाएँ भी गतिशील होती जाती हैं।असीम दक्षता की मांग करने वाली इस नृत्य शैली का प्रदर्शन आमतौर पर जोड़े में कियाजाता हैए जहां कम से कम दो जोड़े होतेहैं जो अपनी स्टेज पर मौजूदगी की निर्बाध गति से अदला बदली करते हैं। 

अन्य आकर्षण