वस्‍त्र

तवांग और उसके आसपास के वस्त्रों पर पाए जाने वाले अलग-अलग रंग और डिज़ाइनें अरुणाचल प्रदेश की विभिन्न जनजातियों की पहचान होते हैं। कुछ खास किस्‍म के कपड़ों और आभूषणों का उपयोग संबंधित परिवार की सामाजिक स्थिति और उपलब्धियों से जुड़ा होता है। इनकी डिज़ाइनों में ज़्यादातर बस्ती के आसपास का भूगोल, वनस्पतियों और जीवों की आकृतियां होती हैं। पैटर्न और रूपांकन ज्यामितीय होते हैं और अपने स्वयं के विशिष्ट अर्थों में काफी जटिल होते हैं। कालीन बनाना, मोनपा जनजाति की विशेषता है, जो ड्रैगन, बेलबूटेदार और ज्यामितीय पैटर्न्‍स वाली मनभावन डिज़ाइनें बुनती है। हालांकि यह उद्यम दैनिक जीवन में उपयोग के एक उत्पाद बतौर शुरू हुआ था, लेकिन आज यहां की कुछ महिलाओं के लिए यह एक प्रमुख व्यवसाय बन गया है।

वस्‍त्र

लकड़ी पर नक्‍काशी

अरुणाचल प्रदेश की अधिकांश जनजातियों, जैसे कि मोनपा, खमती, वांचो, फोम और कोन्यक, का यह पारंपरिक शिल्प है। वांचो लकड़ी-कारीगरों में अनुपात की अच्छी समझ है, उनके मोनपा समकक्ष सुंदर कप, प्‍लेटें और फलों के कटोरे बनाते हैं, साथ ही शानदार मुखौटे भी जिनका उपयाेग नृत्यों और भावपूर्ण अभिनय-प्रदर्शन में होता है। मोनपा, शेरडुकपेन, खम्पा जनजातियां विभिन्न शैलियों के मुखौटे बनाते हैं। उनमें से कुछ असली चेहरों की तरह दिखते हैं, जबकि अन्य पक्षियों, जानवरों और बंदरों की शक्‍ल धारण करते हैं। ये मुखौटे लकड़ी के एक ही टुकड़े से उकेरे जाते हैं जो कि अंदर से खोखला होता है। आंखों और मुंह के लिए छेद बनाये जाते हैं और फिर मुखौटों को पेंट किया जाता है। हालांकि, पुराने मुखौटे बेरंग और मटमैैले पाये गये हैं। मुखौटे अक्सर पुरुषों और लड़कों द्वारा ही पहने जाते हैं।

लकड़ी पर नक्‍काशी

हथियार, शस्त्र

हथियार सदियों से राज्य के आदिवासी जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं। वे रोज़मर्रा के कामों के अलावा, युद्ध के समय रक्षा साधनों के बतौर उपयोग के लिए हैं। सो, हथियारों की एक विस्तृत रेंज स्थानीय रूप से उत्पादित की जाती है। हालांकि उनमें से कुछ अब अप्रचलित हो चले हैं, और उनकी जगह आधुनिक और ज्‍़यादा क्रांतिकारी शस्‍त्रों ने ले ली है। अकस जनजाति अपने धनुष और तीर के लिए जानी जाती है, जिसे क्रमशः टेकी और मू के नामों से जाना जाता है। आखेट के दौरान इनका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। शिकार में उपयोग किए जाने वाले तीर आकार में बड़े होते हैं और इनकी लोहे की नाेकों पर एकोनाइट ज़हर लगा होता हैं। उन्हें तूवू नामक एक बांस के डिब्‍बे में स्‍टोर किया जाता है। दूसरी ओर, धनुष आम तौर पर कंधों पर लटकाये जाते हैं।

हथियार, शस्त्र

बांस और केन उत्पाद

यहां के अधिकांश आदिवासी अपनी खुद की टोपियां बनाते हैं जो खूब सजी होती हैं और पक्षियों की चोंच व पंखों से और लाल रंग से रंगे केश-गुच्‍छ से संवरी होती हैं। इसके अलावा, टोकरियों, बैग्‍स, कंटेनरों आदि सहित अन्य उत्पाद भी बनाये जाते हैं। बेंत और बांस के उत्पाद बनाने का शिल्प कड़ाई से पुरुषों तक ही सीमित रखा जाता है और सबसे आम उत्पाद हैं धान, ईंधन और पानी रखने और लाने, ले जाने के लिए टोकरियों, और स्‍थानीय शराब बनाने के बर्तनों जैसी दैनिक ज़रूरतों की चीज़ें। इनके अलावा, चावल से बनीं किस्‍म किस्‍म की तश्‍तरियां, धनुष और तीर, सिर-परिधान, चट्टाइयां, शोल्‍डर बैग, और बांस व घास की महीन पट्टियों से बने गहने और हार भी मिलते हैं। नोक्टे व वांचो जनजातियां ज़्यादातर अपने सिर-परिधानों, कमरबंदों, सिर-पट्टियों, बाज़ूबंदों आदि के लिए गन्ने की रंगीन पट्टियों का उपयोग करती हैं।

बांस और केन उत्पाद

गहने

आभूषण बनाने के शिल्प का चलन अरुणाचल प्रदेश राज्य में व्यापक है। इनमें से ज़्यादातर की डिज़ाइनें मूल जनजातियों द्वारा की गयी हैं। उन्हें विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों और उत्पादों का उपयोग करके बनाया जाता है। इन आभूषणों को बनाने में इस्तेमाल की जा रही, पुरुषों और महिलाओं, दोनों द्वारा पहनी जा सकने वाली कुछ सामग्री है-बांस पंख, जंगली बीज, कांच के मोती, बीटल पंख आदि। हालांकि अनेक धातुएं इस्‍तेमाल होती हैं, पर चांदी और पीतल सबसे लोकप्रिय हैं। यहां के आभूषणों की विशिष्‍टता इनकी विविधता है। यद्यपि सभी जनजातियां समान सामग्रियों का उपयोग करती हैं, फिर भी उनके आभूषणों में डिज़ाइन, पैटर्न और कौशल भिन्न-भिन्न होते हैं जो प्रत्येक जनजाति के ठेठ अपने होते हैं। यदि आप यहां आ रहे हैं, तो बांस की चूड़ियों और कान के आभूषणों को खरीदना न भूलें, जो अकस जनजाति द्वारा पोकर वर्क डिज़ाइनों से सजाये जाते हैं।

गहने