ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बना अस्वंकृंता मंदिर असम के सभी विष्णु मंदिरों में से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के पद-चिन्ह उनके कच्छप अवतार के रूप में विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार दुष्ट नरकासुर का वध करने से पहले भगवान कृष्ण ने अपनी सेना के साथ इस स्थान पर डेरा डाला था। एक अन्य प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकष्ण की पत्नी रुकमणि का संबंध भी इस मंदिर के साथ बताया जाता है। कहा जाता है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण के घोड़े को इसी स्थान पर बहुत दुश्मनों ने घेर लिया था और तब इस स्थान पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। 

इसके अलावा ब्रह्मपुत्र नदी के पूर्वी छोर पर स्थित है अद्भुत मणिकर्णेश्वर मंदिर, जिसकी आकृति एक तारे की तरह है। एक पहाड़ पर स्थित इस मंदिर का निर्माण पाल राजवंश द्वारा 10वीं-11वीं शताब्दी में करवाया गया था और यह के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से है। एक बार यहां आये विध्वंसकारी भूकंप ने मंदिर की छत को ध्वस्त कर दिया था। इसलिए अब छत को टीन शेड से पाट दिया गया है। 

यहीं पर स्थित एक अन्य पूजनीय स्थल दिर्गेश्वरी मंदिर भी है, जो पर्यटकों को बहुत लुभाता है। आहोम शासक र्स्वगदेओ सिवा सिंह ने इस मंदिर का निर्माण सन 1714 से 1744 के बीच करवाया था। यह मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है, जिसे लेकर लोगों की मान्यता है कि यहां देवी सती के शरीर का एक अंग गिरा था। हालांकि यह मंदिर देवी दुर्गा मां को समर्पित है। लेकिन उनके अलावा भी यहां अनेकों देवी-देवताओं की मूर्तियां पहाड़ की चट्टानों को काटकर बनायी गयी हैं। स्थानीय निवासी कामाख्या मंदिर के बाद इसी स्थान को सबसे अधिक पूजनीय मानते हैं। 

देवी के इन स्थानों के अलावा यहां प्रसिद्ध रुद्रेश्वर मंदिर भी है। ब्रह्मपुत्र नदी के पूर्वी किनारे पर रुद्रेश्वर गांव बसा हुआ है और वहीं पर यह मंदिर स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण सन 1749 में आहोम शासक प्रमत्ता सिंहा ने अपने पिता की याद में करवाया था। प्रमत्ता सिंहा ने इस स्थान पर सन 1744 से 1751 तक शासन किया था। 

इसके साथ-साथ चंद्र भारती पहाड़ की घाटी में स्थित है एक बेहद खूबसूरत डौल गोविंद मंदिर, जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। हालांकि वास्तविक मंदिर 150 वर्ष पहले बनवाया गया था, लेकिन सन 1966 में इस मंदिर का फिर से जीर्णोद्वार किया गया। 

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