जंतर मंतर, जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा, 1724 ई. में उत्तर भारत में बनवाये गये पांच खगोलीय वेधशालाओं में से एक है। यह अपनी बेजोड़ ज्यामितीय संरचना के अद्भुत संयोजन के कारण दुनिया भर के आर्किटेक्ट, कलाकारों और कला इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित करता है। यह नग्न आंखों से खगोलीय स्थितियों के अवलोकन के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह टॉलेमी के स्थिति संबंधी खगोल विज्ञान की परंपरा का एक हिस्सा है, जो अनेक सभ्यताओं में आम था।जंतर मंतर में 13 खगोल विज्ञान उपकरण मौजूद हैं, जिनका उपयोग ग्रहों, सूर्य और चंद्रमा की चाल और समय की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता था। खगोलीय तालिकाओं का प्रयोग खगोलीय पिंडों की सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिए संकलित किया गया था। जंतर मंतर के प्रमुख आकर्षण हैं, मिश्र यंत्र, सम्राट यंत्र और जयप्रकाश यंत्र। सम्राट यंत्र एक विशाल सूर्य घड़ी है, जो पृथ्वी की धुरी के समानांतर खड़ी है और समय की सही जानकारी देने में मदद करती है। जयप्रकाश यंत्र एक गोलार्ध के आकार का यंत्र है और इसका उपयोग सितारों की सही स्थिति को अंकित चिह्नों के साथ संरेखित करने के लिए किया जाता है। वहीं मिश्र यंत्र का उपयोग वर्ष के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिनों का पता लगाने के लिए किया जाता है। इन सभी उपकरणों को ईंट और मलबे के साथ बनाया गया है और इसे चूने के साथ प्लास्टर किया गया है। पर्यटक, जंतर मंतर के पूर्व में स्थित, एक छोटे से भैरव मंदिर को भी जाकर देख सकते हैं। कहा जाता है कि महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को खगोलीय पिंडों की गतिविधियों का पता लगाना बेहद पसंद था, जिसके कारण उन्होंने जंतर मंतर का निर्माण को शुरु कराया था, ताकि इनकी दूरी, स्थान और गति की गणना की जा सके।

अन्य आकर्षण