दिल्ली की हलचल के बीचों-बीच एक विचित्र और शांत स्थान है, जिसे अग्रसेन की-बाउली कहते हैं। यह राजधानी के इतिहास एक झलक पेश करता है। यह 60 मीटर लंबी और 15 मीटर चौड़ी एक ऐतिहासिक सीड़ीनुमा कुआं है। इसके विरासती चरित्र, जटिल संरचना और शांत वातावरण के चलते यह स्मारक अक्सर एक सिनेमाई पृष्ठभूमि प्रदान करता है जिसे फिल्म निर्माता बेहद पसंद करते हैं, जिस कारण इसे आप 'सुल्तान' और 'पीके' जैसी फिल्मों में इसे देख सकते हैं। जैसे ही आप बाउली में गहरे उतरते हैं, आपको एकाएक शीतलता का अहसास होता है। हो सकता है आपको डर की भावना भी अक्समात जकड़ ले क्यों कि इस स्मारक एक समय में भूतिया माना जाता था। कहा जाता है कि बाउली में मौजूद पानी, काले जादू से भरा हुआ है और जो कोई भी इसे देखता है वह एक अजीब मदहोशी की हालत में पहुंच जाता है और इसमें छलांग लगा कर सीधा मृत्यु को प्राप्त करता है। बाउली में 108 सीड़ियां हैं और मेहराबदार तीन मंजिले दोनों तरफ हैं।आज यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है। इसके निर्माता के बारे में जानकारी हेतु शायद ही कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड है, लेकिन यह माना जाता है कि इसे महान राजा अग्रसेन द्वारा बनवाया गया था और अग्रवाल समुदाय द्वारा इसे 14 वीं शताब्दी में फिर से बनवाया गया था।

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