नैना देवी

यह देवी दुर्गा के पंथ से जुड़े 51 शक्तिपीठों (जहां देवी सती के शरीर के अलग-अलग अंग गिरे थे) में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ देवी सती की आँखें गिरी थीं और इसीलिए इस मंदिर को नैना (शाब्दिक अर्थ आँखें) देवी कहा जाता है। इस परिसर के भीतर एक पीपल का पेड़ भी है जिसे मंदिर के समान पवित्र माना जाता है। यह माना जाता है कि वास्तविक प्राचीन मंदिर 15 वीं शताब्दी में कुषाण साम्राज्य के शासन में बनाया गया था । चंडीगढ़ से 100 किमी दूर स्थित, यह मंदिर हर साल हजारों भक्तों को आकर्षित करता है तथा शिवालिक रेंज में 11,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नौ दिनों के त्योहार नवरात्रि के दौरान और मानसून के मौसम में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर से गोबिंद सागर झील का एक अद्भुत दृश्य दिखता है जो अविस्मरणीय आकर्षण है। यह दृश्य मंदिर की पृष्ठभूमि में शांति और प्राकृतिक उदात्तता की भावना संचारित करता है तथा इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता भी इसे अवश्य ही दर्शनीय बनाती है।

नैना देवी

भीमा देवी मंदिर

9वीं -11वीं शताब्दी ईस्वी के बीच के समय में निर्मित भीमा देवी मंदिर के खंडहर इतिहास के बारे में जानने के लिए दिलचस्प स्थान हैं। जैसा कि इस क्षेत्र के आसपास की खुदाई से स्पष्ट है, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था। ऐसा कहा जाता है कि यहां तीन पत्थर के पठार थे, जो संभवत: एक सुंदर प्राचीन मंदिर के भाग थे। पत्थर की पट्टियों से पता चलता है कि यह मंदिर वास्तुकला की पंचायतन शैली में बनाया गया होगा, जिसमें एक मुख्य मंदिर केंद्र में स्थित है और चार उप-मंदिरों को चार दिशाओं में स्थापित किया गया है। यहाँ कुल पाँच मंदिर थे। मंदिर में खजुराहो जैसी मूर्तियां और कलारूप हैं। इसके अलावा यहाँ के अवशेषों से पता चलता है कि उस प्राचीन मंदिर में चैत्य खिड़कियां, भद्रमुखा और लघु बुर्ज जैसे वास्तुशिल्प तत्व शामिल थे।

पुरातत्वविदों द्वारा अध्ययित शिलालेखों के अनुसार इस क्षेत्र को कभी भीमा नगर के रूप में जाना जाता था। माना जाता है कि यह नाम भीमा देवी को समर्पित एक बहुप्रतिष्ठित स्थानीय मंदिर से लिया गया है। इस क्षेत्र के कई संदर्भ या तो भीम नागर के नाम से हैं या पंचपौरा के नाम से, जो यह बताते हैं कि यह 9वीं और 12वीं शताब्दी ईस्वी सन् के बीच काफी महत्व का स्थान था ।

भीमा देवी मंदिर

मनसा मंदिर चंडी मंदिर

मनसा और चंडी मंदिर दोनों बहुत लोकप्रिय मंदिर हैं और दोनों की यात्रा को आसानी से एक साथ किया जा सकता है क्योंकि वे एक दूसरे से केवल 10 किमी दूर स्थित हैं। चंडी मंदिर देवी चंडी को समर्पित है जिन्हें शक्ति की देवी माना जाता है। यह एक शक्तिपीठ है (ऐसा मंदिर जहां देवी सती के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे) और यहीं से चंडीगढ़ शहर को नाम मिला है। इस मंदिर में नौ दिनों के पवित्र त्योहार नवरात्रि के समय बड़ी संख्या में आगंतुक श्रद्धालु पूजा करने आते हैं।

चंडीगढ़ मनसा देवी मंदिर पंचकूला में स्थित है, जो शहर से 8 किमी दूर है। यह भी माता मनसा देवी को समर्पित एक शक्तिपीठ है। स्थानीय किंवदंती के अनुसार, देवी सती का सिर यहां गिरा था और परिणामस्वरूप, उनके सम्मान में एक मंदिर बनाया गया था। मनसा देवी परिसर में दो मंदिर हैं। माना जाता है कि मुख्य मंदिर 1815 ईस्वी में मणि माजरा के शासक द्वारा स्थापित किया गया था। नए मंदिर के निर्माण के लिए पटियाला के महाराजा को श्रेय दिया जाता है। मंदिर के ठीक बगल में बड़ी संख्या में पवित्र पौधों से सुसज्जित एक सुंदर उद्यान भी बनाया गया है जहाँ आगंतुक आराम कर सकते हैं। नवरात्रि के उत्सव में बड़े पैमाने पर यहाँ श्रद्दालु आते हैं।

मनसा मंदिर चंडी मंदिर

चनेती स्तूप

कहा जाता है कि प्राचीन ईंट निर्मित चनेती स्तूप के खंडहर मौर्य काल के उस खंड से हैं जब श्रुघ्न नगर (अब सुघ) सम्राट अशोक के शासन में था। चीनी तीर्थयात्री युआन च्वांग द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार, सुघ कई महत्वपूर्ण स्तूपों के साथ-साथ एक मठ का भी केन्द्र था। गांव चनेती सुघ से लगभग 3 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है, और बहुत संभावना है कि चनेती में स्थित स्तूप युआन च्वांग द्वारा संदर्भित स्तूपों में से एक था। गोलार्ध बनाने के लिए संकेंद्रित परतों में पकी हुई ईंटों द्वारा निर्मित इस स्तूप की स्थापत्य शैली तक्षशिला के शाहपुर और धर्मराजिका स्तूप से मेल खाती है। जब इसका निर्माण किया गया था, तो यह स्तूप संभवतः लकड़ी की चाहरदीवारी से घिरा हुआ था क्योंकि यहाँ पत्थर की चाहरदीवारी का कोई निशान नहीं मिला है। कुषाण काल में पुरानी परिधि पथ या प्रदक्षिणा पथ के पास चार दिशाओं में चार मंदिरों का निर्माण हुआ। इसके चारों ओर चलने के लिए एक नया मार्ग भी बनाया गया था। यह भारत का एकमात्र स्थान है जहाँ सुंग काल की टेराकोटा से बनी वानरा (बंदर) रूपी कृतियाँ मिली हैं। पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार यह उत्तरापथ पर एक महत्वपूर्ण व्यापार जंक्शन था, जो यमुना नदी के तट पर स्थित था। चीनी यात्री युआन च्वांग के यात्रालेख के अनुसार, यह गांव काफी बड़ा और महत्वपूर्ण था, जिसमें लगभग सौ हिंदू मंदिर, दस स्तूप और पांच मठ थे।

चनेती स्तूप