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हस्तशिल्प गुजरात के लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जामनगर और कच्छ क्षेत्र को बंधेज या बांधनी के उत्पादों के लिए जाना जाता है। एक और बारीक काम जो यहां किया जाता है, वह है मोतियों का काम। दो या तीन मोतियों को एक साथ पिरोकर इसे बनाया जाता है। इस शिल्प द्वारा स्मृति चिन्ह जैसे लटकते हुए चाकले, मंगल कलश, सजे हुए नारियल, कलाकृतियां, हार, चूड़ियां, झुमके, गहने और तोरण बनाए जाते हैं। पर्यटकों को विशेष रूप से बहुत बारीक व परिष्कृत ढंग से बुनी हुई हुए पटोला या दोहरी इकत की साड़ियों पसंद आती हैं। दोनों किनारों पर समान डिजाइन बनाने के लिए एक विशिष्ट बंधेज की तकनीक का उपयोग किया जाता है, जो पटोला की साड़ियों की खास विशेषता है।
गुजरात लकड़ी के छोटे हस्तशिल्पों व फर्नीचर के लिए भी जाना जाता है। सूरत, कच्छ और सौराष्ट्र से लकड़ी का फर्नीचर और मीनाकारी का फर्नीचर और राजकोट से खरीदा जा सकता है। गुजरात के सबसे पुराने हस्तशिल्पों में से एक है जरी। इतिहासकारों के अनुसार, इस शिल्प को मुगलकाल के दौरान शुरू किया गया था और इसमें मुगल महिमा का प्रदर्शन करने वाले मोटिफ और डिजाइनों का उपयोग किया जाता था। इस राज्य को दुनिया के सबसे पुराने ब्लॉक प्रिंटिंग सेंटर के रूप में भी सम्मान प्राप्त है। गुजरात की यात्रा करते समय, मिट्टी और टेराकोटा से बनी आकृतियां और खिलौने अवश्य खरीदें। कुछ अन्य महत्वपूर्ण शिल्पों में चमड़ा, एप्लीक वर्क और पैचवर्क भी वहां की खासियत हैं।
निरोना गांव भुज से 40 किमी दूर स्थित है और यह रोगन कला के लिए जाना जाता है। फारस से भारत आई इस कला को गांव में खत्री परिवार ने जीवित रखा था। फारसी भाषा में 'रोगन' शब्द का अर्थ है तेल और पेंट अरंडी के तेल का उपयोग करके बनाया जाता है। पहले जमाने में, स्थानीय समुदाय के लोग शादी समारोहों के लिए रोगन कलाकृतियां खरीदा करते थे।