दक्षिण भारतीय में फ़िल्टर कॉफ़ी नामक एक विशिष्ट पेय को दूध तथा उबलते पानी के माध्यम से बारीक जमीन कॉफी बीन्स को छानकर बनाए गए कॉफी के काढ़े को एक साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। इसे दूध के साथ या बिना दूध के पिया जा सकता है। फिल्टर कॉफी एक तीव्र पेय है जिसे और उबाल कर और अधिक सघन बनाया जाता है।

माना जाता है कि भारत में कॉफ़ी सबसे पहले 17वीं शताब्दी की शुरुआत में कर्नाटक के रस्ते आई थी। उस समय तक कॉफी आज के यमन देश के क्षेत्र में संरक्षित रखा गया एक रहस्य था। किंवदंती है कि चिकमगलूर के एक मुस्लिम फ़क़ीर बाबा बुदन वहाँ से अपनी दाढ़ी में छुपा कर सात कॉफी बीन ले आए और उन्होंने उन बीजों को कर्नाटक की चंद्रगिरी पहाड़ियों में रोप दिया।

19 वीं शताब्दी आते-आते कॉफी की संस्कृति पूरे दक्षिण भारत में व्याप्त हो चुकी थी, जहां लोग अपने इस पेय को दूध के साथ तैयार कर के उसे मीठा करने के लिए गुड़ और शहद का प्रयोग करना शुरू कर चुके थे।

आज कॉफी को स्टेनलेस स्टील के गिलास में परोसा जाता है, जिसमें बेलनाकार कप की तरह दिखते दो हिस्से होते हैं। एक हिस्से का उपयोग ताजा पिसी हुई कॉफ़ी को भरने के लिए किया जाता है, और दूसते हिस्से में तैयार पेय एकत्र किया जाता है।