अयोध्या के बाहरी इलाके में स्थित सिद्धपीठ पाटन देवी उन 51 शक्तिपीठों में से एक है जहाँ देवी सती के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे। यह स्थान अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वही स्थान है जहां सती का दाहिना कंधा गिरा था। इस मंदिर का सम्बन्ध महाभारत कालीन महायोद्धा कर्ण से भी है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने इस मंदिर के ठीक बगल में स्थित सूर्य कुंड का निर्माण किया था। इस मंदिर का पुनः नए सिरे से राजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित करवाया गया था, और बाद में इसे 11वीं सदी में श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। इस मंदिर में पाटन देवी के साथ माँ कालिके, काल भैरव और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। यह मंदिर तुलसीपुर से चौधरीडीह की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित है।

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