झूलती मीनारों के नाम से प्रसिद्ध इन अनोखी मीनारों ने सदियों से वास्तुकारों एवं अभियंताओं को हैरान कर रखा है। कोई यह नहीं बता पाता कि एक मीनार के हिलने पर दूसरी में कंपन कैसे उत्पन्न होने लगता है, जबकि दोनों को जोड़ने वाला गलियारा स्थिर तथा कंपनरहित है। ये मीनारें अहमदाबाद की प्रतिष्ठित संरचनाओं में से एक हैं। इनमें से एक मीनार तीन मंज़िला ऊंची हैं जिसमें छज्जे बने हैं और उन पर पेचीदा नक्काशी की गई है। मीनारों की जोड़ी में से एक मीनार सारंगपुर दरवाज़ा के विपरीत एवं दूसरी मीनार जिसका नाम मलिक सरनथेर है, कालूपुर रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है। सारंगपुर दरवाज़ा के निकट स्थित एक मीनार सीदी बशीर मस्जिद के प्रांगण में है, जिसका निर्माण सुल्तान अहमद शाह के एक गुलाम ने 1452 ईस्वीं में करवाया था। ये मीनारें तथा इनके मध्य बना मुख्यद्वार कभी सीदी बशीर मस्जिद का हिस्सा हुआ करते थे। 
अब काफ़ी समय से इन मीनारों के झूलने एवं कंपन का प्रदर्शन जनता के लिए नहीं किया जा रहा है। 1753 में मराठा एवं गुजराज के सुल्तान के मध्य हुए संघर्ष में मुख्य इमारत क्षतिग्रस्त हो गई थी। इन मीनारों के कंपन के रहस्य का पता लगाने के लिए, एक अंग्रेज़ ने इस इमारत को ध्वस्त करने का प्रयास किया किंतु वह इस संरचना का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाया था।   

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