गुजरात की सुंदर बावड़ियों में से एक अडालज वाव अहमदाबाद के उक्रार में 19 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण रानी रुदादेवी ने 1499 में अपने पति की याद में करवाया था, जो वाघेला साम्राज्य के प्रमुख वीरसिंह की पत्नी थीं। किंवदंती के अनुसार, 15वीं सदी में राणा वीरसिंह इस क्षेत्र पर शासन किया करते थे। उस समय यह इलाका दांडई देश के नाम से जाना जाता था। उनके साम्राज्य में हमेशा से ही पानी की किल्लत झेलनी पड़ती थी तथा उन्हें बारिश पर निर्भर रहना पड़ता था। तब राजा ने आदेश दिया कि इलाके में बड़ा एवं गहरा कुआं बनाया जाए। इससे पहले की कुएं का निर्माण कार्य पूरा होता पड़ोसी मुस्लिम शासक मोहम्मद बेगडा ने दांडई देश पर आक्रमण कर दिया, जिसमें वीरसिंह मारा गया। यद्यपि उसकी विधवा सती होना चाहती थी (उस समय यह प्रथा थी कि जिस महिला के पति की मृत्यु हो जाती थी, तब वह जलती चिता में भस्म हो जाती थी) किंतु बेगडा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और कहा कि वह उससे विवाह करना चाहता है। रानी ने एक शर्त पर उसकी बात मानी कि पहले वह कुएं का निर्माणकार्य पूरा करवाए। बेगडा ने उसकी शर्त मान ली और कुएं का निर्माण तय समय में हो गया। रानी के मन में कुछ और ही विचार आ रहे थे। सबसे पहले उसने प्रार्थना करते हुए पूरे कुएं की परिक्रमा की और फ़िर कुएं में छलांग लगा दी ताकि वह अपने पति से एकाकार हो सके। इस बावड़ी की विशेषता यह है कि इसके तीन प्रवेश द्वार उस मंच के नीचे जाते हैं जो 16 स्तंभां पर टिका हुआ है। सीढ़ियों वाले ये तीनों प्रवेश द्वार भूतल की ओर जाते हैं और ऊपर अष्टकोणीय छत बनी हुई है। सभी 16 स्तंभों के किनारों पर मंदिर बने हैं। यह बावड़ी पांच तल गहरी है। इस बावड़ी में इष्टदेवों के अलावा माखन निकालने के लिए मंथन करती महिलाओं से लेकर दर्पण में स्वयं को निहारतीं महिलाओं तक की आकृतियां उकेरी गई हैं। इस बावड़ी में श्रद्धालु एवं व्यापारी शरण लिया करते थे। ऐसा माना जाता है कि गांव वाले यहां पानी लेने तथा देवी-देवताओं की पूजा करने आते थे। वास्तुकला एवं पुरातात्विक विशेषज्ञों का मानना है कि अष्टकोणीय छत के कारण हवा व सूरज की रोशनी इसमें प्रवेश नहीं कर पाती। इस कारण बावड़ी के अंदर का तापमान बाहर की अपेक्षा अधिक ठंडा रहता है। यह वाव इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें जैन धर्म से संबंधित प्रतीक भी बने हुए हैं जो उस काल को दर्शाते हैं जब इसका निर्माण हुआ था। यहां पर कल्पवृक्ष (जीवन का पेड़) एवं अमी खुम्बोर (जीवन के जल वाला कटोरा) नक्काशी देखने लायक हैं, जो पत्थर की एक ही शिला पर उकेरे गए हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि कुएं के किनारे पर बनी नवग्रहों की छोटी आकृतियां इसकी बुरी आत्माओं से रक्षा करती हैं।

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